14
जून,2024
साउथ इंडियन अभिनेता विजय सेतुपति को उनके प्रशंसकों के बीच 'मक्कल सेलवन' के नाम से जाना जाता है। अभिनय के क्षेत्र में उनके 50वें कदम की चर्चा हर ओर थी और इसका नाम 'महाराजा' सुनते ही लोगों में उत्साह का माहौल बन गया। अनीता यूडीप द्वारा निर्देशित इस फिल्म ने विजय सेतुपति के करियर में एक महत्वपूर्ण मील का पत्थर स्थापित किया है।
फिल्म की कहानी एक साधारण व्यक्ति के महाराजा बनने की यात्रा को बयां करती है। यह व्यक्ति अपने संकल्प और महत्वाकांक्षाओं के दम पर राज्य के उच्चतम पद पर पहुंचता है, लेकिन उसकी यह यात्रा किसी परी कथा से कम नहीं है।कहानी में उसे किन कठिनाइयों का सामना करना पड़ता है और इस सफर में उसकी क्या कीमत चुकानी पड़ती है, यही फिल्म का प्रमुख बिंदु है।
विजय सेतुपति का अभिनय हमेशा से ही उनकी फिल्मों की जान माना जाता है और इस फिल्म में भी उनके अभिनय की काफ़ी सराहना हो रही है। दर्शकों और आलोचकों दोनों का कहना है कि उन्होंने अपने किरदार में पूरी ईमानदारी और मेहनत झोकी है। उनकी संवाद अदायगी, भावनाओं को व्यक्त करने का तरीका और सहजता काबिले तारीफ है।
लेकिन फिल्म की कहानी को लेकर मिली-जुली प्रतिक्रियाएं आ रही हैं। कई समीक्षक इसके प्लॉट को बेहद तयशुदा और भविष्यवाणी करने योग्य मान रहे हैं। उनका मानना है कि कहानी में नई बात नहीं और कुछ नयापन जोड़ने की कोशिश नहीं की गई है। इसके कारण फिल्म में गहराई की कमी महसूस हो रही है।
हालांकि, यवन शंकर राजा द्वारा रचित संगीत ने इस फिल्म को नए आयाम दिए हैं। संगीत का उपयोग साफ़-सुथरा और प्रभावी है, जो फिल्म की कहानी को अच्छी तरह से समर्थन देता है।
फिल्म में प्रिया भवानी शंकर, भगवती पेरुमल और प्रवेना जैसे कलाकारों ने भी अपनी महत्वपूर्ण भूमिकाएं निभाई हैं। इनके सहयोगी अभिनय ने फिल्म को प्रभावशाली बना दिया है।
जहां यह फिल्म विजय सेतुपति के करियर की महत्वपूर्ण उपलब्धि है, वहीं बॉक्स ऑफिस पर इसका प्रदर्शन मुकम्मल नहीं रहा। सीमित प्रतिक्रिया और मिश्रित समीक्षाओं के चलते दर्शकों की प्रतिक्रिया ठंडी रही है। अभी यह देखना बाकी है कि फिल्म कितनी सफल साबित होगी।
'महाराजा' के प्रति मिली-जुली प्रतिक्रियाओं के बावजूद, विजय सेतुपति की लोकप्रियता और फिल्म का संगीत दर्शकों को आकर्षित करने में सक्षम हो सकते हैं। हालांकि मजबूत कहानी और प्रभावी निर्देशन के अभाव ने इसे एक उत्कृष्ट फिल्म बनाने से रोक दिया है। इसके बावजूद, सिनेमा प्रेमियों के लिए यह फिल्म एक देखने लायक है क्योंकि यह एक महान अभिनेता की 50वीं फिल्म है।
अंततः, 'महाराजा' विजय सेतुपति की 50वीं फिल्म तो है, लेकिन उसे महान बनाने के लिए और अधिक मेहनत की जरूरत थी। अभिनय की उत्कृष्टता और संगीत की सुरीली धुनों के बावजूद, कहानी के अभाव में यह फिल्म महज सामान्य स्तर पर ही ठहर पाई है।
ये फिल्म तो बस विजय के अभिनय का जश्न है... कहानी तो पुरानी बात है, पर वो इसे जीवंत कर देते हैं। एक बार देख लो, बस एक बार।
मैंने इसे देखा... विजय का अभिनय तो बेस्ट है, पर कहानी जैसे किसी ने 2010 की फिल्म से कॉपी-पेस्ट कर दी हो। अनीता यूडीप ने बस एक नाम बनाने की कोशिश की है, न कि कोई नया संदेश देने की। अब तो लोग विजय के नाम से ही बुक कर लेते हैं, फिल्म के नाम से नहीं। 😔
अरे भाई, ये फिल्म तो दक्षिण भारत की शान है! उत्तर वाले लोग इसे समझ नहीं पाते क्योंकि उनके पास अभिनय का असली अर्थ ही नहीं है। विजय एक देवता हैं, इस फिल्म को बॉक्स ऑफिस पर फ्लॉप कहना बेकार की बात है।
भाई, ये फिल्म तो विजय के करियर का एक अहम मील का पत्थर है... इतने सालों में 50 फिल्में करना कोई आसान बात नहीं है। अगर कहानी थोड़ी पुरानी है तो भी अभिनय और संगीत ने इसे बचा लिया। और हां, यवन शंकर का संगीत... ओमग वो तो दिल छू गया 😭🎶
विजय के अभिनय की तुलना में ये कहानी बहुत फीकी लगी। पर जब वो बोलते हैं, तो लगता है जैसे उनकी आवाज़ में पूरा तमिलनाडु का इतिहास छिपा है। ये फिल्म देखने के बाद मैंने अपने दादा को फोन किया... उन्होंने कहा, 'बेटा, ये वो तमिल अभिनय है जो हम बचपन में देखते थे।'
अरे भाई, ये फिल्म तो बस एक लंबा टीवी एड है जिसमें विजय अपने फैंस को बता रहे हैं कि वो अभी भी 'मक्कल सेलवन' हैं। कहानी? नहीं। मोड़? नहीं। भावनाएँ? बस एक फैक्टरी से निकली हुई टेम्पलेट वाली भावनाएँ। और संगीत? वो तो बस बैकग्राउंड में चल रहा है जैसे कोई फ्रिज बज रहा हो। मैंने इसे देखा, और अब मुझे लगता है कि मैंने अपना जीवन बर्बाद कर दिया।
मैंने फिल्म देखी... विजय तो बहुत अच्छा है... लेकिन कहानी बहुत धीमी थी... और थोड़ा बोरिंग लगा... अच्छा संगीत तो था... लेकिन क्या हुआ अगर कहानी नहीं थी...? 😅
मैंने इस फिल्म को दो बार देखा है। पहली बार मैंने सिर्फ विजय के अभिनय को देखा, दूसरी बार मैंने फिल्म के वातावरण, लाइटिंग और निर्देशन को ध्यान से देखा। अनीता यूडीप ने बहुत कम बजट में एक बड़ा सपना दिखाया है। ये फिल्म एक अभिनेता की यात्रा नहीं, एक आत्मा की यात्रा है। और हां, विजय के संवादों के बीच के खाली समय में ही तो असली भावनाएँ छिपी होती हैं। ये फिल्म तब तक नहीं समझी जा सकती जब तक आप इसे दो बार न देखें।
कहानी बेकार है पर विजय ने इसे जिंदा कर दिया। बस इतना ही।
ये फिल्म एक दर्पण है... जो हम सबके अंदर के महाराजा को दिखाती है... जो हमें बताती है कि हम सब अपने घर में राजा हैं... बस हम अपने आप को नहीं पहचानते 😌✨
मैंने फिल्म को एक अलग नजरिए से देखा - ये एक बार की नहीं, बल्कि एक नस्ल की कहानी है। विजय का किरदार वो है जिसे हम सभी ने कभी नहीं देखा, लेकिन हर एक ने अपने दिल में महसूस किया है। ये फिल्म बाहर की नहीं, अंदर की यात्रा है। और इसकी कमी ये नहीं कि ये नया नहीं है, बल्कि ये कि हम इसे नहीं देख पाए।
ये फिल्म बस एक बड़ा धोखा है... विजय के फैंस को बेचने के लिए बनाई गई एक बड़ी जालसाजी... संगीत भी बनाया गया है बाजार के लिए... ये फिल्म आपको बताती है कि आपका जीवन असली नहीं है... और आपको इसकी जरूरत है... विजय के नाम पर चल रही एक बड़ी साजिश है
विजय के लिए ये फिल्म एक नमन है... अगर आप इसे बेकार कहते हैं, तो आप उस अभिनय को नहीं जानते जिसने दक्षिण भारत के लाखों लोगों के दिलों में जगह बनाई है। ये फिल्म बस एक फिल्म नहीं, एक आदर है।