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अक्तू॰,2025
अक्टूबर 2025 में भारतभर के स्कूलों की स्कूल छुट्टियों का सिलसिला जबरदस्त होगा, क्योंकि राष्ट्रीय तथ्य और राज्य‑विशिष्ट त्यौहार दोनों ही टाइम‑टेबल को मोड़ रहे हैं। जब महात्मा गांधी का जन्म दिवस गाँधी जयंतीभारत (2 अक्टूबर) पूरे देश में राष्ट्रीय अवकाश बनता है, तब से CBSE (सेंट्रल बोर्ड ऑफ सेकंडरी एजुकेशन) अपने छात्रों के लिए एक विस्तृत ‘ऑटम्न ब्रेक’ घोषित कर चुका है। इसी बीच दीवालीभारत, दुर्गा पूजापश्चिम बंगाल, और छठ पूजाभारत जैसी धार्मिक‑सांस्कृतिक घटनाएँ भी कैलेंडर में प्रमुख स्थान रखती हैं। ये सभी कारण मिलकर इस महीने को विद्यार्थियों, अभिभावकों और स्कूल प्रशासन के लिए ‘ज्यादा‑ध्यान‑देने‑योग्य’ बना देते हैं।
नीचे संक्षिप्त तालिका में मुख्य राष्ट्रीय एवं स्थानीय छुट्टियों को दर्शाया गया है। प्रत्येक तिथि को संबंधित राज्य‑विशिष्ट नोट के साथ दिया गया है, ताकि पढ़ने वाले को त्वरित समझ मिल सके।
हर राज्य की शिक्षा विभाग ने अलग‑अलग अधिसूचना जारी की है। नीचे प्रमुख राज्यों की छुट्टियों का सारांश दिया गया है:
इन विविधताओं के कारण राष्ट्रीय स्तर पर एक ही तिथि का ‘सभी के लिए समान’ कैलेंडर बनाना मुश्किल है। इसलिए अभिभावकों को बोर्ड‑स्तरीय सूचनाओं के साथ साथ अपने राज्य के शैक्षिक विभाग के आधिकारिक पोर्टल पर नजर रखनी चाहिए।
इंडियन मीटियोरोलॉजिकल डिपार्टमेंट (IMD) ने अक्टूबर के पहले हफ्ते में उत्तरी‑पश्चिमी घाटी में लगातार भारी वर्षा की भविष्यवाणी की थी। इस कारण इंडियन एक्सप्रेस ने रिपोर्ट किया कि पश्चिम बंगाल, हिमाचल और जम्मू‑कश्मीर में स्कूलों को एक‑दो‑तीन दिन के लिए अचानक बंद किया गया। 9 अक्टूबर (गुरुवार) को कई स्कूलों ने “सुरक्षा कारणों” के तहत छात्रों को घर भेज दिया।
एक स्थानीय प्रधानाध्यापक, श्रीमती शर्मा (संत पोर्टी स्कूल, डार्जिलिंग) ने कहा, “हमने छात्र‑अभिभावकों को त्वरित सूचना भेजी, क्योंकि पहाड़ी क्षेत्रों में भू‑स्लाइड का जोखिम अत्यधिक था।” इस तरह की आकस्मिक बंदी साल‑दर‑साल बढ़ रही हैं, और इससे परीक्षा‑तैयारी में थोड़ा व्यवधान तो आता है, पर छात्रों की सुरक्षा प्राथमिकता बनी रहती है।
शिक्षा नीति आयोग के विशेषज्ञ डॉ. अर्चना वर्मा का मानना है कि “अक्टूबर महीने की दो‑तीन हफ्तों की लगातार छुट्टियाँ, अगर सही ढंग से नियोजित नहीं हों, तो पाठ्यक्रम में ढीलाव आ सकता है।” उन्होंने सुझाव दिया कि बोर्ड‑स्तर पर ‘कंपैक्ट’ ब्रेक‑प्लान बनाकर, परीक्षाओं से पहले दो‑तीन अतिरिक्त क्लासेस जोड़ी जाएँ।
दूसरी ओर, राष्ट्रीय शैक्षिक अनुसंधान संस्थान (NIRF) के विश्लेषण से पता चलता है कि 2025 में लगभग 2.6 करोड़ छात्र इन छुट्टियों के कारण अपनी पढ़ाई में “ट्यूशन या ऑनलाइन क्लास” का सहारा ले रहे हैं। यह आंकड़ा पिछले वर्ष से 8% अधिक है, जो दर्शाता है कि निजी ट्यूशन संस्थानों का बोझ भी बढ़ रहा है।
आगामी सालों में मौसम‑प्रभावित बंदी को कम करने के लिए कुछ उपाय प्रस्तावित किए जा रहे हैं:
माता‑पिता के लिए सबसे काम की टिप यह है कि वे स्कूल की आधिकारिक वेबसाइट, राज्य शिक्षा विभाग के पोर्टल और विश्वसनीय समाचार स्रोतों (जैसे द इकॉनॉमिक टाइम्स) को नियमित रूप से फॉलो करें। साथ ही, यदि आप दूरस्थ क्षेत्र में रहते हैं, तो स्थानीय प्राधिकरण द्वारा जारी मौसम‑सुरक्षा रिपोर्ट को अनदेखा न करें।
हाँ, 2 अक्टूबर को राष्ट्रीय स्तर पर सभी स्कूलों में बंदी होती है, क्योंकि यह भारत‑व्यापी सार्वजनिक अवकाश है। लेकिन कुछ राज्य इस दिन को अतिरिक्त स्थानीय त्यौहारों के साथ मिलाकर लंबा ब्रेक बना सकते हैं।
मुख्यतः पश्चिम बंगाल, ओडिशा, असम और बिहार में 11‑13 अक्टूबर को दुर्गा पूजा के कारण स्कूल बंद रहते हैं। इन राज्यों में यह त्यौहार बहुत बड़ा cultural event है, इसलिए अधिकांश सरकारी स्कूल छुट्टी देते हैं।
आमतौर पर अचानक बारिश या बाढ़ के बाद 1‑3 दिन की अस्थायी बंदी होती है। यदि परिस्थितियाँ गंभीर हों तो स्थानीय प्रशासन या शिक्षा विभाग दो‑तीन अतिरिक्त दिन भी तय कर सकते हैं, जैसा कि 2025 के अक्टूबर में पश्चिम बंगाल और जम्मू‑कश्मीर में देखा गया।
बहुत से राज्यों में दीवाली के बाद 24 अक्टूबर (शुक्रवार) से नियमित शेड्यूल फिर से शुरू हो जाता है। कुछ राज्य, जैसे केरल, अतिरिक्त दो‑तीन दिन का ब्रेक भी दे सकते हैं, इसलिए स्थानीय सूचना पर नजर रखें।
छुट्टियों के बाद रिवर्सी क्लासेज़, ऑनलाइन मॉड्यूल और ट्यूशन सेंटर की मदद ली जा सकती है। कई बोर्ड (जैसे CBSE) ने आधिकारिक तौर पर ‘क्लास रीकैप’ की अनुशंसा की है, ताकि छात्रों को चूके हुए सीरियल्स को जल्दी पकड़ सकें।
वास्तविक डेटा का विश्लेषण करने पर स्पष्ट होता है कि अक्टूबर के स्कूल कैलेंडर में मौसमी व्यवधानों का सम्मिलित प्रभाव न केवल शैक्षणिक निरंतरता को बाधित करता है, बल्कि विद्यार्थियों की मनोवृत्ति पर भी नकारात्मक प्रतिकूलता उत्पन्न करता है। यह बहुस्तरीय जटिलता प्रणालीगत रिस्क एसेसमेंट मॉडलों द्वारा पूर्वानुमानित की जा सकती है, परन्तु वर्तमान नीति अभिकर्ता इनके कार्यान्वयन में आलस्य दर्शाते हैं।
देखो भाई, इधर‑उधर के जलवायु से जुड़ी बंदी तो चलती रहती है, पर हम सबको डिजिटल क्लासेस का बैक‑अप रख लेना चाहिए। अगर स्कूल बंद हो जाए तो ऑनलाइन यूडेमी या यूट्यूब पर सीख सकते हैं, इससे पढ़ाई में कोई खाई नहीं रहेगी।
अक्टूबर का महीना सच में कई मायनों में छात्र-छात्राओं के लिए एक चुनौतीपूर्ण समय जैसा दिखता है, क्योंकि इस दौरान राष्ट्रीय और राज्य‑स्तर दोनों पर विभिन्न त्यौहार और मौसम‑संबंधी अस्थायी बंदी का संगम होता है। पहले तो हमें यह समझना चाहिए कि हर छुट्टी का मूल उद्देश्य सामाजिक‑सांस्कृतिक एकता को बढ़ावा देना है, परन्तु जब ये छुट्टियां लगातार दो‑तीन हफ्तों तक फैली रहती हैं, तो शिक्षण‑पाठ्यक्रम में खाई बनना स्वाभाविक है। इस खाई को भरने के लिए कई उपाय सुझाए जा रहे हैं, जैसे कि ऑनलाइन लर्निंग प्लेटफ़ॉर्म का सक्रिय उपयोग, रिवर्सी रिव्यू सत्र आयोजित करना और अतिरिक्त क्लासेज़ का प्रावधान। विशेष रूप से ग्रामीण और दूर‑दराज़ क्षेत्रों में जहाँ भौगोलिक कारक अधिक प्रभावी होते हैं, वहां इस तरह की डिजिटल बैक‑अप रणनीति बहुत उपयोगी सिद्ध हो सकती है।
इसके अलावा, अभिभावकों को भी एक सक्रिय भूमिका निभानी चाहिए; वे स्कूल की आधिकारिक वेबसाइट, राज्य शिक्षा विभाग के पोर्टल और विश्वसनीय समाचार स्रोतों को नियमित रूप से फॉलो करके अचानक होने वाली बंदियों के बारे में समय से पहले जानकारी हासिल कर सकते हैं। इस तरह की जानकारी उन्हें अपने बच्चों की पढ़ाई की योजना बनाने में मदद करती है और अनावश्यक तनाव को कम करती है।
बोर्ड‑स्तर पर यदि हम एक अधिक कॉम्पैक्ट शेड्यूल बना सकते हैं, जिसमें प्रमुख त्यौहारों को समेटते हुए भी पढ़ाई के लिए पर्याप्त समय बचा रहे, तो यह एक संतुलित समाधान हो सकता है। डॉ. अर्चना वर्मा के सुझाव के अनुसार, दो‑तीन अतिरिक्त क्लासेज़ को प्रमुख परीक्षा के पहले जोड़ना एक व्यावहारिक उपाय हो सकता है, जिससे शैक्षणिक गति में कोई बड़े अंतर न आए।
अंत में, यह कहना जरूरी है कि शिक्षा व्यवस्था में लचीलापन और अनुकूलन क्षमता दो ऐसी कुंजी हैं, जिनके बिना हम मौसमी और सामाजिक बाधाओं को प्रभावी ढंग से संभाल नहीं सकते।
यह उल्लेखनीय है कि विभिन्न राज्य‑स्तरीय प्रशासनिक आदेशों के कारण एक समान राष्ट्रीय कैलेंडर स्थापित करना कठिन हो जाता है, परन्तु एक समग्र दिशानिर्देश तैयार करना आवश्यक प्रतीत होता है।
संस्कृतिक विविधता को ध्यान में रखते हुए, प्रत्येक राज्य के स्थानीय त्यौहारों को शैक्षणिक कैलेंडर में सम्मिलित करना चाहिए, ताकि सामाजिक समन्वय बना रहे।
उध्यन का प्रेॉर्यर लांशोढ प्रकट होतै है की, मौसमी बँदि अतज्यूं सअलावस्फ़िक सुतर तै बदल जते हैं।
भाई, छुट्टी में देर तक लैपटॉप चालु रखो और इतिहास या गणित के टॉपिक सीधा YouTube से देखो, फिर स्कूल में वापस आओ तो फोकस आसान रहेगा।
निम्नावधि मौसमी घटनाएँ, विशेषतः हिमाचल प्रदेश व जम्मू‑कश्मीर जैसे पर्वतीय क्षेत्रों में, अत्यधिक बवंडर एवं बाढ़ जोखिम उत्पन्न करती हैं, जिससे शैक्षणिक संस्थानों को संक्षिप्त एवं अस्थायी रूप से संचालन बंद करना अनिवार्य हो जाता है; इस प्रकार की अनपेक्षित बाधाएँ, यदि पूर्वानुमानित एवं व्यवस्थित रूप से दस्तावेज़ीकृत न हों, तो शैक्षिक निरंतरता एवं छात्र‑अभिभावक‑प्रशासन के बीच विश्वास निर्माण में बाधक सिद्ध हो सकती हैं।
देखिए, इन सभी गरमागर्म छुट्टियों के पीछे एक छिपी हुई योजना है; सरकार चाहती है कि हम सब ऑनलाइन क्लासेस लेकर डिजिटल कंपनियों की लहर में फँसें।
शिक्षा के धारा में परिवर्तन के दौर में, मौसमी विरामों को आत्मनिरीक्षण का अवसर मानना चाहिए, जहाँ हम अनुसंधान‑आधारित शैक्षणिक रणनीतियों को पुनः परिकल्पित कर सकें।
वॉव! इतना मजेदार कैलेंडर है, अब तो छुट्टियों में कैंडी खाएंगे और फिर पढ़ाई की मज़े करेंगे!