जैसे ही जून महीने का पहला सोमवार आता है, पूरे देश में प्राइड फ्लैग लहराते हैं और सामाजिक मीडिया पर #PrideMonth ट्रेंड करता है। यह सिर्फ एक महीना नहीं, बल्कि LGBT+ समुदाय के लिये आवाज़ उठाने, पहचान को मनाने और अधिकारों की मांग करने का मंच है। आप भी अगर इस माह में कुछ नया सीखना या समर्थन दिखाना चाहते हैं, तो पढ़िए आगे क्या‑क्या हो रहा है।
पहली बार 1970 के दशक में न्यूयॉर्क में स्टोनवॉल रैली से शुरू हुआ प्राइड, धीरे‑धीरे विश्व भर में फैल गया। भारत ने 2009 में पहला प्राइड परेड आयोजित किया, लेकिन बड़े शहरों तक इसकी पहुँच अभी भी सीमित है। आज का मकसद सिर्फ पैरेड नहीं; यह शिक्षा, स्वास्थ्य, नौकरी और कानूनी सुरक्षा जैसे मुद्दों को सामने लाने के लिये जागरूकता अभियान बन गया है। कई NGOs इस महीने में कार्यशालाएँ, फिल्म स्क्रीनिंग और पैनल चर्चा करवाते हैं, जिससे समुदाय की आवाज़ सख्त होती है।
2025 के प्राइड मंथ में मुंबई, दिल्ली, बेंगलुरु और कोलकाता जैसे बड़े शहरों में कई कार्यक्रम निर्धारित हैं। मुंबई में “स्ट्राइक फॉर समानता” वॉक मार्च का आयोजन हो रहा है, जिसमें 10,000 से अधिक लोग भाग ले रहे हैं। दिल्ली में राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग के साथ मिलकर एक पैनल चर्चा होगी, जहाँ स्वास्थ्य अधिकार और ट्रांसजेंडर रोजगार पर बात होगी। बेंगलुरु की टेक इकोसिस्टम इस बार LGBTQ+ स्टार्ट‑अप फंडिंग सत्र रख रही है, जो युवा उद्यमियों को प्रोत्साहित करेगा।
इन कार्यक्रमों के अलावा कई छोटे स्तर के ग्रासरूट समूह भी मिलन स्थल बनाते हैं – कॉफ़ी शॉप में क्विज़ रात, किताब क्लब में LGBTQ+ साहित्य पढ़ना या ऑनलाइन वेबिनार में कानूनी सलाह लेना। अगर आप भाग नहीं ले पाए तो सोशल मीडिया पर #PrideMonthIndia टैग से जुड़ सकते हैं, तस्वीरें शेयर करके और स्थानीय NGOs को फंड देने के लिए दान लिंक का उपयोग कर सकते हैं।
समुदाय की कहानियाँ अक्सर अनसुनी रहती हैं, इसलिए कई पोर्टल्स इस महीने में व्यक्तिगत अनुभवों को उजागर कर रहे हैं। एक सिंगापुर‑भर्ती कंपनी ने अपने ट्रांसजेंडर कर्मचारी के साथ हुए सकारात्मक बदलाव की कहानी शेयर की; दिल्ली की एक कॉलेज छात्रा ने बताया कि कैसे प्राइड इवेंट ने उसकी पढ़ाई में आत्मविश्वास बढ़ाया। ये कहानियाँ दर्शाती हैं कि समर्थन सिर्फ बड़े कार्यक्रमों तक सीमित नहीं, बल्कि रोज़मर्रा की छोटी‑छोटी जीत भी मायने रखती है।
अगर आप अपने आसपास के लोगों को इस माह में शामिल करना चाहते हैं तो कुछ आसान कदम उठा सकते हैं: स्थानीय प्राइड समूह से जुड़ें, उनके फ़ेसबुक पेज फॉलो करें और इवेंट्स की जानकारी रखें; सार्वजनिक स्थानों पर रेनबो स्टिकर लगाएँ; या अपनी कंपनी में समावेशी नीतियों के लिए सुझाव दें। छोटे‑छोटे कार्य बड़े बदलाव की नींव बनते हैं, इसलिए एक आवाज़ भी काफी असर कर सकती है।
अंत में याद रखिए कि प्राइड मंथ सिर्फ जश्न नहीं, बल्कि अधिकारों की मांग का मंच है। इसे समझदारी से उपयोग करके हम सभी मिलकर एक समावेशी भारत बना सकते हैं जहाँ हर कोई बिना डर के अपनी पहचान जी सके। इस महीने को अवसर बनाइए अपने विचार साझा करने, सीखने और समर्थन देने का – क्योंकि बदलाव शुरू होता है जब आप कदम बढ़ाते हैं।
प्राइड मंथ, जिसे 1 जून से शुरू होता है, 1969 स्टोनवॉल विद्रोह की याद में मनाया जाता है और LGBTQ समुदाय के समान अधिकारों की लड़ाई का जश्न मनाता है। इसके उत्सव और चुनौतियों के साथ, यह महीने LGBTQ व्यक्तियों को दृश्यता और समुदाय प्रदान करता है। इसमें महत्वपूर्ण नीति और संसाधन मुद्दों को उजागर किया जाता है।
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