11
अक्तू॰,2024
तेलुगू फिल्म 'विश्राम', जिसे प्रसिद्ध निर्देशक श्रीनु वैतला द्वारा निर्देशित किया गया है, 11 अक्टूबर, 2024 को बड़े पर्दे पर प्रकट हुई। यह फिल्म अपनी अनोखी कहानी और पात्रों की जीवंतता के माध्यम से दर्शकों के दिल को छू लेने में सफल होती है। गोपीचंद और काव्य थापर की जोड़ी ने इस फिल्म को न केवल जीवन्तता प्रदान की है बल्कि फिल्म के भावनात्मक पहलुओं को भी अच्छी तरह दर्शाया है।
फिल्म 'विश्राम' के प्रारंभ से ही दर्शकों को एक अभूतपूर्व अनुभव की ओर आकर्षित किया जाता है, जो उन्हें अंत तक जोड़े रखता है। कहानी जिस प्रकार से गढ़ी गई है, वह दर्शकों के मस्तिष्क में विभिन्न भावनाओं की गूंज पैदा करती है। फिल्म का कथा, नाटकीयता, थ्रिलर और ड्रामा के संयोजन के साथ एक शानदार वातावरण तैयार करती है।
यह कहानी एक साधारण व्यक्ति के इर्द-गिर्द घूमती है, जो जीवन में कई चुनौतियों का सामना करता है और उनसे पार पाने का प्रयास करता है। गोपीचंद ने अपने पात्र को बखूबी जीवंत किया है, और काव्य थापर उनकी सहयोगी के रूप में अपनी भूमिका को खूबसूरती से पेश करती हैं।
डायरेक्टर श्रीनु वैतला का निर्देशन दक्षता की उंचाईयों को छुता है। हर दृश्य में उनकी कला देखने को मिलती है, चाहे वह फिल्म का चरमोत्कर्ष हो या इसकी छोटी-छोटी घटनाएं। फिल्म की पटकथा और निर्देशन के दौरान उन्होंने जिस तरह से कहानी कहने की कला को दिखाया है, वह वास्तव में सराहनीय है।
फिल्म के तकनीकी पहलुओं की बात करें तो इसमें उत्कृष्ट सिनेमैटोग्राफी और दिल को छू लेने वाला संगीत है। सिनेमैटोग्राफर ने हर दृश्य को बड़ी खूबसूरती से कैप्चर किया है। लिजो के. जोस के संगीत ने फिल्म के अनुभव को और भी समृद्ध बनाया है। बैकग्राउंड स्कोर इतना सशक्त है कि यह कहानी के भाव और पात्रों की संवेदनाओं को और गहरा बनाता है।
फिल्म की संपादन कला भी बखूबी की गई है, जिससे इसकी गति बनी रहती है और दर्शकों का ध्यान एक पल के लिए भी नहीं भटकता। यह कारण है कि फिल्म दर्शकों को शुरू से अंत तक अपने साथ बनाए रखती है।
'विश्राम' मूवी दर्शकों को कला की विभिन्न श्रेणियों जैसे कि ड्रामा, थ्रिलर, और क्रिया के साथ मनोरंजन का बेहतरीन मिश्रण प्रदान करती है। फिल्म के फोन में एक ओर जहाँ ह्रदयस्पर्शी दृश्य हृदय को छू जाते हैं, वहीं दूसरी ओर इसके क्रियात्मक सीक्वेंस उत्साह और रोमांच से भरपूर हैं।
फिल्म के नाटकीय मोड़े और पात्रों के विकास के जरिए दर्शकों के दिल में जगह बनाने में सफल होती है। इसका स्क्रीनप्ले दर्शकों को हर समय जाग्रत रखता है और यह महसूस कराता है कि कोई अनावश्यक तत्व नहीं डाला गया है।
इसकी दो घंटे की अवधि में, फिल्म 'विश्राम' बदली हुई घटनाओं और भिन्न भावनाओं से दर्शकों को बांधे रखती है। यह फिल्म न केवल एक फिल्म के रूप में मनोरंजन करती है, बल्कि यह दर्शकों को जीवन की उलझनों और उनसे पार पाने के प्रयासों की कहानी भी कहती है। कुल मिलाकर, 'विश्राम' फिल्म रोमांचकारी अनुभव के साथ दर्शकों पर गहरी छाप छोड़ती है।
ये फिल्म तो बस एक बेवकूफी है। तेलुगू सिनेमा का नाम खराब कर रहे हो। गोपीचंद का अभिनय भी बेकार है, और ये सब निर्देशन? बस धुंधली छवियाँ और लंबे संवाद। इसे फिल्म नहीं, एक बोरिंग टीवी शो कहो।
फिल्म एक आत्मा की यात्रा है जो शोर में खो जाती है और फिर खामोशी में पाई जाती है। हर दृश्य एक सवाल है जिसका जवाब दर्शक अपने अंदर ढूंढता है। ये कोई फिल्म नहीं ये एक दर्पण है। जीवन का विश्राम तो हम सबके लिए चाहिए।
वाह ये फिल्म तो मन को छू गई 😭❤️ गोपीचंद का चेहरा जब उसने बारिश में खड़े होकर आँखें बंद कीं... मैं रो पड़ा। संगीत? लिजो के. जोस ने तो दिल की धड़कन को नोट में बदल दिया। बस एक बात - अगर ये फिल्म तुम्हारे दिल को छू गई तो तुम जिंदा हो। 🙏
अत्यंत श्रेष्ठ निर्माण। एक ऐसी कृति जिसे देखना एक धार्मिक कर्तव्य है। कला के इस अद्भुत उपहार को बेकार बताने वाले लोग जीवन के अर्थ को नहीं समझते। मैंने इसे तीन बार देखा। हर बार एक नया आत्मा मिला। श्रीनु वैतला एक दिव्य व्यक्ति हैं। 🙏
फिल्म में थ्रिलर नहीं है। ड्रामा भी नहीं। बस लंबे शॉट्स और बोरिंग डायलॉग। सिनेमैटोग्राफी अच्छी है, लेकिन ये फिल्म एक लॉन्ग फॉर्म एडवर्टाइजमेंट है जो कहती है 'मैं गहरी हूँ'। पात्रों का विकास? नहीं। बस बोलने वाले चेहरे।
तुम सब लोग बस इस फिल्म को बढ़ावा दे रहे हो क्योंकि ये तेलुगू है। अगर ये हिंदी में होती तो कोई नहीं देखता। गोपीचंद का अभिनय बहुत अच्छा है, लेकिन ये फिल्म एक लंबा बातचीत का वीडियो है। मैंने 45 मिनट में ही बंद कर दिया।
फिल्म का निर्माण तो बहुत सुंदर है, लेकिन कहानी का निर्माण बेहद बेकार है। सारे पात्र एक जैसे हैं - दुखी, भावुक, और बहुत अधिक गहरे। ये निर्देशक लगता है कि अगर कोई चीज धीमी है तो वह गहरी है। काव्य थापर का अभिनय एक रिसर्च पेपर जैसा है - बिल्कुल बेजान।
अगर तुमने ये फिल्म देखी है तो तुम एक बेहतर इंसान बन गए हो। हर दृश्य में कुछ नया सीखने को मिलता है - जीवन, शांति, अपने आप से बात करना। कोई भी फिल्म नहीं जो इतनी धीरे-धीरे तुम्हें अपने अंदर ले जाए। बस एक बार देखो। बिना किसी राय के। बस देखो।