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अग॰,2024
बांग्लादेश में सरकारी विरोधी प्रदर्शन हाल में हिंसक हो गए हैं, जिसमें अब तक 100 से अधिक लोग मारे जा चुके हैं और सैकड़ों घायलों की संख्या बढ़ रही है। इन प्रदर्शन की शुरुआत छात्रों के एक समूह द्वारा की गई थी, जो सरकारी रोजगारों में कोटा प्रणाली के खिलाफ थे। इस कोटा प्रणाली के तहत सरकारी नौकरियों में 30% पद युद्ध के वेटरन्स के परिवारों के लिए आरक्षित थे।
यह कोटा प्रणाली लंबे समय से विवाद का विषय रही है। छात्रों का तर्क था कि इस प्रणाली से योग्य उम्मीदवारों के साथ अन्याय हो रहा है। सुप्रीम कोर्ट ने कोटा को 30% से घटाकर 5% करने का आदेश दिया, लेकिन फिर भी विरोध प्रदर्शन जारी रहे। छात्रों का आरोप है कि इस व्यवस्था से भ्रष्टाचार और रिश्तेदारवाद को बढ़ावा मिलता है।
शुरुआत में ये प्रदर्शन शांति पूर्वक थे, लेकिन जैसे-जैसे दिन बीते, इसमें हिंसा बढ़ती गई। पुलिस और प्रदर्शनकारियों के बीच तीव्र टकराव हुए, जिससे स्थिति और गंभीर हो गई। प्रदर्शनकारियों ने सरकारी संपत्ति को नुकसान पहुंचाया, और पुलिस ने भीड़ को नियंत्रित करने के लिए बल प्रयोग किया, जिससे हिंसा और भड़क उठी।
ऐसी विकट स्थिति में प्रधानमंत्री शेख हसीना की सरकार ने कई कठोर कदम उठाए। सरकार ने कई स्थानों पर कर्फ्यू लगाकर मोबाइल इंटरनेट सेवाओं को सीमा भी लगा दिया। पुलिस को 'देखते ही गोली मारने' का आदेश भी जारी किया गया। इस कदम की व्यापक निंदा हुई है।
प्रदर्शनकारियों ने प्रधानमंत्री शेख हसीना के इस्तीफे की मांग की है और इन हिंसाओं के लिए उन्हें पूरी तरह जिम्मेदार ठहराया है। वहीं, शासक दल अवामी लीग ने प्रमुख विपक्षी दल बांग्लादेश नेशनलिस्ट पार्टी और प्रतिबंधित जमात-ए-इस्लामी को इस हिंसा को भड़काने का आरोप लगाया है।
बांग्लादेश की इस अस्थिरता को देखते हुए, भारतीय सरकार ने भी अपने नागरिकों के लिए चेतावनी जारी की है। सरकार ने भारतीय नागरिकों को बांग्लादेश की यात्रा से परहेज करने की सलाह दी है।
फिलहाल, बांग्लादेश में स्थिति गंभीर और अस्थिर है। दोनों पक्षों - प्रदर्शनकारी एवं सरकार - के बीच तनाव बना हुआ है और कोई भी पक्ष पीछे हटने को तैयार नहीं है। इस हिंसा का जल्द से जल्द समाधान निकालना अनिवार्य है, अन्यथा इसका असर और भी गहरा हो सकता है।
बांग्लादेश में यह स्थिति सरकार और जनता के बीच गहरे विभाजन को दर्शाती है। ऐसे समय में एक स्थिर और संतुलित समाधान निकालना ही सभी के हित में होगा। बांग्लादेश के नागरिकों के लिए शांति और न्याय की उम्मीद बनी रहेगी।
ये सब क्या हो रहा है भाई 🤯 एक कोटा के लिए इतनी हिंसा? इंसानियत कहाँ गई? लोगों के खून से राजनीति नहीं बनती।
इस हिंसा का मूल कारण तो यह है कि हमने अपनी शिक्षा और न्याय की व्यवस्था को राजनीतिक लाभ के लिए बेच दिया है। छात्रों की मांग पूरी तरह से न्यायसंगत है, लेकिन जब सरकार इंटरनेट बंद कर देती है और पुलिस को 'देखते ही गोली मारने' का आदेश देती है, तो यह कोई समाधान नहीं, बल्कि एक अपराध है। यह तो डिक्टेटरशिप की बात हो रही है, लोकतंत्र की नहीं।
मेरे दोस्त का भाई ढाका में है उसने कहा सड़कें खून से लाल हैं और मोबाइल बंद है लोग बस डरे हुए हैं और सरकार बस चुप है
अरे भाई ये बांग्लादेशी लोग अपने देश में ही आपस में लड़ रहे हैं और हम इंडिया वाले इनकी चिंता कर रहे हैं? इनकी सरकार अपने लोगों को गोली मार रही है तो क्या हुआ? अगर ये लोग अपने देश को नियंत्रित नहीं कर पा रहे तो हम इनकी आँखों के सामने चावल भेज रहे हैं? ये लोग तो अपने आप में एक बेकार देश हैं जिनका नाम बांग्लादेश है और जिनके अंदर अपने आप को नियंत्रित करने की क्षमता नहीं है।
ये सब अमेरिका के खिलाफ एक षड्यंत्र है और वो भी भारत के खिलाफ जो बांग्लादेश में अपना असर बढ़ाना चाहता है और फिर इन छात्रों को फंसा रहा है ताकि बांग्लादेश में अशांति फैले और भारत के खिलाफ नफरत बढ़े और वो भी इसके लिए अपने एजेंट बांग्लादेश में भेज रहे हैं जो छात्रों को भड़का रहे हैं
इस स्थिति में, हमें यह समझना चाहिए कि एक न्यायपालिका का आदेश - चाहे वह कितना भी न्यायसंगत क्यों न हो - अगर उसे अनदेखा किया जाता है, तो यह एक लोकतांत्रिक संस्थान के लिए एक गंभीर चिंता का विषय है। और जब सरकार इंटरनेट बंद कर देती है, तो यह केवल जानकारी के प्रवाह को रोकने का प्रयास नहीं है, बल्कि नागरिकों के अधिकारों को निलंबित करने का एक चरम उदाहरण है। हमें इसे न्याय के बजाय शक्ति के अभिव्यक्ति के रूप में देखना चाहिए।
इस संकट का विश्लेषण करने के लिए हमें एक सामाजिक-आर्थिक ढांचे के बारे में समझना होगा जिसमें आरक्षण के विवाद के अलावा युवाओं के लिए रोजगार के अवसरों का संकुचित बाजार, राजनीतिक नियंत्रण के अधीन शिक्षा प्रणाली, और जनता के बीच विश्वास के अभाव के कारण यह आंदोलन इतना तीव्र हो गया है। यह एक संरचनात्मक विफलता है, जिसे तात्कालिक दमन से नहीं, बल्कि एक समावेशी राजनीतिक वार्ता और सामाजिक न्याय के आधार पर ही सुलझाया जा सकता है।
सरकार ने गोली मारी। लोग मरे। अब चुप रहो।