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अप्रैल,2025
बिहार में जमीन से जुड़े विवाद हर गांव–कस्बे तक फैले हुए हैं। लोग अक्सर शिकायत करते हैं कि सालों से उनकी जमीन का रिकार्ड अप–टू–डेट नहीं है या गलत नाम चढ़ा हुआ है। ऐसे में राज्य सरकार बिहार भूमि सर्वे को सबसे बड़ी जिम्मेदारी मान रही है। शुरुआत में सर्वे जुलाई 2026 तक खत्म होना था, पर अब सरकार ने इसे 30 दिसंबर 2026 तक खींच दिया है। इस फैसले की घोषणा विधानसभा में राजस्व एवं भूमि सुधार मंत्री संजय सरावगी ने करने के बाद अफसरों से लेकर जिले–ब्लॉक स्तर तक हलचल मच गई।
जमीन के सर्वे के जरिए सरकार पूरी कोशिश कर रही है कि हर खानदान की मिल्कियत, सीमांकन और अन्य रिकॉर्ड एकदम दुरुस्त हो जाएं। इसका फायदा सीधे आम लोगों को मिलेगा—न तो वंशावली गलत होगी, न ही थोड़ी–सी चूक में किसी की जमीन दूसरों के नाम हो जाएगी। सबसे खास बात यह है कि इन रिकॉर्ड्स को डिजिटल प्लेटफॉर्म पर भी डाला जा रहा है, जिससे सालों की जमीनी उठापटक खुद–ब–खुद काबू में आ सके। जमीन के मालिकों को लिए भी यह काफी राहत देने वाली खबर है।
डेडलाइन बढ़ने से लोगों को राहत तो मिली है, लेकिन असली सिरदर्द बना है स्व–घोषणा। हर जमीन मालिक को वंशावली, संपत्ति और अपने दावे की पूरी जानकारी एक फॉर्मेट में जमा करनी है। इसके लिए आखिर तारीख 31 मार्च 2025 ही रखी गई है। विपक्षी नेताओं का कहना है कि ये टारगेट पूरा करना लोगों के लिए टेढ़ी खीर है। Reason साफ है—ग्राम पंचायत से प्रमाणित कागजात लेना, सरकारी दफ्तरों के चक्कर और ऑनलाइन सर्वर लगातार डाउन रहना, इन सबसे जनता त्रस्त है। आरजेडी (RJD) ने इस तारीख को आगे बढ़ाने की जोरदार मांग रखी, लेकिन मंत्री सरावगी ने फिलहाल इसमें कोई ढील नहीं दी। उनका कहना है कि जहां–जहां गड़बड़ी थी, उसे सुधार भी रहे हैं और बड़ी बात यह कि जिन–जिन डिवीजनों में डाटा अपलोड हो रहा है वहाँ सिस्टम ठीक है।
विपक्षी पार्टियां इसे भ्रष्टाचार का पिटारा बता रही हैं। विरोधियों के अनुसार, म्युटेशन (नामांतरण) के नाम पर भारी–भरकम घूस मांगी जाती है, ब्लॉक–कर्मियों की लापरवाही से डाटा में गड़बड़ियां दर्ज होती हैं और ग्रामीण लगातार परेशान होते हैं। इसके जवाब में मंत्री ने फिर दोहराया कि विभागीय अफसरों को सख्त हिदायत दी गई है—गलतियों पर तत्काल एक्शन हो, नहीं तो जिम्मेदार अफसरों पर कार्रवाई तय है।
अब तक के इस अभियान के लिए लगभग ₹1,955 करोड़ का संशोधित बजट पास हो चुका है, जबकि विपक्ष के वाक–आउट के बीच ही सरकार ने नए बजट को मंजूरी दे दी।
तारीख़ें तो आगे–पीछे हो सकती हैं, लेकिन जो उम्मीदें सरकार ने जगाई हैं, उन पर निगाह टिक गई है—क्या वाकई बिहार में जमीन का रिकॉर्ड दो साल बाद एकदम साफ–सुथरा दिखेगा, या फिर लोग फाइलें पकड़–पकड़ कर ही भागते रह जाएंगे?
ये डेडलाइन बढ़ाने का फैसला असल में बहुत समझदारी भरा है! लोगों को तो बस एक बार सही तरीके से डेटा डालना है, लेकिन ब्लॉक ऑफिस जाने का तो दिनभर लग जाता है। अब थोड़ा समय मिल गया, तो लोग धीरे-धीरे अपनी फाइलें तैयार कर सकते हैं। मैंने अपने गांव में एक ग्रुप बनाया है, जहां हम सब मिलकर एक-दूसरे की मदद कर रहे हैं। अगर कोई फॉर्म भरने में फंस रहा है, तो बस कमेंट कर दो, मैं उसे गाइड कर दूंगा 😊
इस सर्वे की नीतिगत अवधारणा तो अत्यंत उचित है-भूमि स्वामित्व की पारदर्शिता एक सामाजिक न्याय का मुद्दा है। लेकिन जब अभियान के लिए अनुदान ₹1,955 करोड़ आवंटित हो रहा है, तो इसके संचालन में लोकतांत्रिक जवाबदेही का तत्व कहाँ है? यहाँ एक अंतर्निहित विरोधाभास है: डिजिटल रिकॉर्डिंग के नाम पर एक निरंकुश ब्यूरोक्रेसी का निर्माण हो रहा है, जिसकी जांच तक नहीं हो पा रही। क्या यह सिर्फ डेटा का बदलाव है, या फिर शक्ति का पुनर्वितरण?
मुझे लगता है कि ये सब बस एक नाटक है। जमीन के नाम बदलने का तो अब तक कितने अभियान हुए? हर बार नया फॉर्म, नया सॉफ्टवेयर, नया डेडलाइन... लेकिन असली जमीन तो वही रह गई। जिसके पास रिश्ते हैं, उसकी जमीन बरकरार है। जिसके पास दस्तावेज हैं, उसकी जमीन गायब हो जाती है। इस सर्वे से कुछ नहीं बदलेगा। बस एक बार फिर से सरकार ने अपनी शक्ति का दर्शन कराया।
भाई, ये बिहार की जमीन की कहानी है या कोई बॉलीवुड फिल्म? पहले जुलाई 2026, फिर दिसंबर 2026, फिर मार्च 2025 तक स्व-घोषणा-ये तो एक गेम है जिसमें आपको बार-बार रिस्टार्ट करना पड़ता है! मैंने अपने चाचा की जमीन के लिए 12 बार ब्लॉक ऑफिस जाना पड़ा, और हर बार एक नया अफसर आ जाता है जो कहता है, 'पिछला वाला गलत था!' अब तो मैंने फैसला कर लिया है-अगर ये सर्वे खत्म हो गया, तो मैं अपनी जमीन को एक दरवाजे के पीछे छुपा दूंगा। वरना कोई और इसे अपना नाम लिख लेगा! 😅
इस सर्वे के लिए बजट बढ़ाना एक बड़ी बात है। लेकिन जब तक राज्य के अधिकारियों की नौकरी का तरीका नहीं बदलेगा, तब तक ये सब बस एक नाटक है। मैंने अपने बाप के नाम पर जमीन का रिकॉर्ड अपडेट कराने के लिए 3 साल लगा दिए। अफसर ने कहा-'पहले ग्राम पंचायत का सर्टिफिकेट लाओ।' ग्राम पंचायत ने कहा-'अब जिला अधिकारी का स्टैम्प चाहिए।' जिला अधिकारी ने कहा-'पहले ऑनलाइन फॉर्म भरो।' ऑनलाइन फॉर्म तो दो दिन तक डाउन रहा। ये नहीं है सुधार, ये है जमीन का बहाना बनाना।
ये डेडलाइन बढ़ाना एक छोटी सी उम्मीद है। 🌱