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नव॰,2025
दिल्ली के 12 सरकारी अस्पतालों में अचानक ऑपरेशन थियेटर बंद हो गए — और इसकी वजह एक ऐसा तकनीकी खामी है जिसके बारे में कोई भी अधिकारी खुलकर बात नहीं करना चाहता। गुरुवार को सुबह 6 बजे से शिवाजी स्टेडियम के पास लाल बहादुर शास्त्री अस्पताल, इंदिरा गांधी अस्पताल, और राजीव गांधी अस्पताल सहित अन्य बड़े स्वास्थ्य संस्थानों में सभी नियोजित और आपातकालीन सर्जरी स्थगित कर दी गईं। ये बंदी अभी तक जारी है — और इसका असर लाखों लोगों पर पड़ रहा है।
किसी ने भी जारी नहीं किया आधिकारिक बयान, लेकिन तीन स्रोतों ने बताया कि अस्पतालों के ऑपरेशन थियेटर में लगे एंटीबायोटिक स्प्रे सिस्टम और ऑक्सीजन डिलीवरी नेटवर्क में एक गंभीर लीक हो गया है। एक इंजीनियर ने बताया, "हमने सुबह 4:30 बजे एक अलार्म सुना — ऑक्सीजन प्रेशर ड्रॉप हो रहा था। फिर पता चला कि दो ट्यूब्स फट गई हैं, और उनके आसपास का सामान भी खराब हो गया।" इस खराबी के कारण, डॉक्टरों ने अनुमति नहीं दी कि कोई सर्जरी शुरू हो। एक अस्पताल में तो एक बच्चे की आपातकालीन एपेंडिसिटिस की सर्जरी 3 घंटे टालनी पड़ी — जब तक कि एक निजी अस्पताल से ऑक्सीजन टैंक नहीं भेजे गए।
ये बंदी बस एक टेक्निकल इशू नहीं है — ये जीवन-मरण का मामला है। दिल्ली के बरेली बाजार के एक रोगी की बेटी, जो अपनी माँ के लिए दिल्ली आई थी, ने कहा, "हमने 12 घंटे इंतजार किया, फिर डॉक्टर ने कहा कि अगर आज नहीं हुई तो कल भी नहीं होगी।" उनकी माँ को गुर्दे का ट्यूमर था, और ये सर्जरी उनकी जान बचाने के लिए जरूरी थी। ऐसे 237 मामले आज रिकॉर्ड हुए हैं — जिनमें ऑपरेशन टाले गए। इनमें से 18 मामले बच्चों के हैं।
इस तरह की तकनीकी खराबी का कारण बहुत पुरानी समस्या है — अस्पतालों का निर्माण और उनकी रखरखाव की जिम्मेदारी अलग-अलग विभागों के बीच बंटी हुई है। ऑपरेशन थियेटर के इंजीनियरिंग सिस्टम की जिम्मेदारी दिल्ली सरकार का स्वास्थ्य विभाग है, लेकिन उनके पास इसके लिए बजट नहीं है। 2022 के एक रिपोर्ट के मुताबिक, दिल्ली के 68% सरकारी अस्पतालों में ऑक्सीजन सिस्टम 10 साल से ज्यादा पुराने हैं। एक आंतरिक ऑडिट में पाया गया था कि लाल बहादुर शास्त्री अस्पताल में ऑक्सीजन ट्यूब्स की जगह बदलने के लिए 2.3 मिलियन रुपये की राशि बजट में रखी गई थी — लेकिन वो पैसा अभी तक खर्च नहीं हुआ।
"हम नहीं चाहते कि कोई इस तरह की बात करे, लेकिन हम भी घबरा रहे हैं," बताते हैं डॉ. अमित शर्मा, लाल बहादुर शास्त्री अस्पताल के एक चीफ सर्जन। उन्होंने बताया कि आज रात तक 17 आपातकालीन मामले बच गए केवल इसलिए कि निजी अस्पतालों ने अपने ऑपरेशन थियेटर फ्री में उपलब्ध करा दिए। एक नर्स ने फोन पर कहा, "हम रो रहे हैं। नहीं कि थक गए हैं — बल्कि इसलिए कि हम जानते हैं कि अगर ये बंद रहा तो कल कोई और जान जा सकती है।"
स्वास्थ्य विभाग ने आज दोपहर 3 बजे एक आपात बैठक बुलाई है। अधिकारियों का कहना है कि ऑक्सीजन सिस्टम को 48 घंटे में ठीक कर दिया जाएगा। लेकिन ये वादा पहले भी किया गया था — 2021 में भी एक ऐसी ही घटना हुई थी, जब एक बच्चे की मौत हो गई थी। उस बार भी कहा गया था कि "अगली बार ऐसा नहीं होगा।" लेकिन आज फिर वही गलती दोहराई जा रही है।
दिल्ली में सरकारी अस्पतालों की बुनियादी सुविधाओं की अस्थिरता का सवाल पिछले 15 सालों से चल रहा है। 2015 में एक राष्ट्रीय स्वास्थ्य ब्यूरो की रिपोर्ट ने बताया था कि दिल्ली के अस्पतालों में 72% ऑक्सीजन सिस्टम नियमित रूप से जांच नहीं होते। 2020 के कोविड के दौरान भी ऑक्सीजन की कमी से कई लोगों की मौत हुई थी। लेकिन उसके बाद कोई बड़ा सुधार नहीं हुआ। बजट में बड़ी राशि आती है — लेकिन उसका उपयोग दूसरी जगह हो जाता है।
ये मामला अब सिर्फ एक तकनीकी खराबी नहीं, बल्कि एक लोकतांत्रिक प्रश्न बन गया है। क्या एक राजधानी में, जहां राष्ट्रीय नेता रहते हैं, एक बच्चे की सर्जरी टालनी पड़े क्योंकि ऑक्सीजन का ट्यूब फट गया? ये सवाल अब न्यायालयों के दरवाज़े पर खड़ा है। एक नागरिक अधिकार संगठन ने आज हाई कोर्ट में एक पीटीआई दायर कर दी है। इसके अलावा, दो सांसदों ने आज लोकसभा में एक अत्यावश्यक प्रश्न दर्ज किया है।
हां, 18 आपातकालीन मामलों में सर्जरी टालनी पड़ी, जिनमें 12 बच्चे शामिल हैं। एक बच्चे को आज दोपहर तक ऑपरेशन थियेटर में नहीं ले जा सका — जब तक कि निजी अस्पताल ने अपनी सुविधा उपलब्ध नहीं कराई। डॉक्टरों के मुताबिक, इस देरी से बच्चे की जान को खतरा हो सकता है।
2022 के आंतरिक ऑडिट के मुताबिक, दिल्ली सरकार ने ऑक्सीजन सिस्टम के लिए 2.3 करोड़ रुपये की राशि बजट में रखी थी, लेकिन वो पैसा कभी खर्च नहीं हुआ। जिम्मेदारी अलग-अलग विभागों के बीच बंटी हुई है — स्वास्थ्य विभाग को बजट देना है, लेकिन इंजीनियरिंग विभाग को उसका इस्तेमाल करना है। इस तरह की जिम्मेदारी का टुकड़ा-टुकड़ा होना ही इस तरह की गलतियों का कारण बनता है।
नहीं। निजी अस्पताल आपातकाल में सहायता कर रहे हैं, लेकिन ये एक स्थायी समाधान नहीं है। ज्यादातर गरीब परिवारों के पास निजी अस्पताल में इलाज के लिए पैसे नहीं होते। ये सिर्फ एक तात्कालिक बचाव है — और ये बचाव भी बहुत कम संख्या में मरीजों तक पहुंच रहा है।
हां। दिल्ली सरकार ने आज एक आंतरिक जांच समिति गठित की है, जिसकी अध्यक्षता स्वास्थ्य विभाग के एक अतिरिक्त सचिव करेंगे। लेकिन इसके अलावा, एक नागरिक अधिकार संगठन ने हाई कोर्ट में पीटीआई दायर कर दी है, जिसमें आरोप लगाया गया है कि ये एक अपराध है जो जीवन के अधिकार को उल्लंघित करता है।
ये सब कुछ तो पहले भी हुआ है। ऑक्सीजन ट्यूब फटना? बस एक नया नाम है पुरानी बेकारी का। हमारे अस्पतालों में तो बिजली भी अचानक बंद हो जाती है। डॉक्टर और नर्स लोग रो रहे हैं, लेकिन ऊपर वाले तो बैठे हैं कॉफी पीते हुए।
मैंने अपनी माँ को लाल बहादुर शास्त्री अस्पताल में भेजा था, वो भी इसी तरह के इंतजार में फंस गई थी। दो दिन लग गए, फिर भी ऑपरेशन नहीं हुआ। अब तो मैं निजी अस्पताल में जाने का फैसला कर चुकी हूँ, लेकिन पैसे नहीं हैं।
अरे भाई, ये सब तो बस राजनीति का नाटक है। जब तक एक मंत्री का बेटा ऑपरेशन थियेटर में फंस जाएगा, तब तक कोई नहीं उठेगा। बजट में पैसा रखा है? हां, लेकिन वो पैसा कहाँ गया? जानते हो क्या? वो तो एक नए बुर्जुआ गाड़ी में चला गया।
हर बार जब ऐसा होता है, तो हम सब रोते हैं, लेकिन फिर भूल जाते हैं। ये बच्चे, ये माँएँ, ये डॉक्टर - ये सब किसके लिए जी रहे हैं? ये तो सिर्फ एक अस्पताल की बात नहीं, ये हमारी इंसानियत की बात है। कृपया इसे भूल मत जाना।
ये बस एक ऑक्सीजन ट्यूब नहीं फटी, ये हमारी जिंदगी का एक तार टूट गया है। जब तक ये सरकार नहीं बदलेगी, तब तक ये घटनाएँ दोहराएँगी। अगर तुम्हारा बेटा यहाँ आपातकालीन ऑपरेशन के लिए ले जाया जाए और वो मर गया, तो तुम भी चिल्लाओगे।
इतनी बड़ी घटना के बाद भी कोई नेता नहीं आया? ये दिल्ली है, न कि कोई गाँव। अगर यहाँ एक चैनल का लोगो खराब हो जाए, तो तुरंत टीवी पर चलता है। लेकिन बच्चे की जान? वो तो बस एक नंबर है।
ये तो बहुत बुरा है... मैंने भी पिछले साल अपनी बहन को इंदिरा गांधी अस्पताल में भेजा था, वहाँ भी ऑक्सीजन की दिक्कत थी... लेकिन उस बार हम निजी अस्पताल गए... बहुत पैसे खर्च हुए... लेकिन वो बच गई... अब तो मुझे लगता है कि गरीबों के लिए ये अस्पताल बस एक बर्बर जगह है...
हम लोगों को अपने देश के लिए गर्व है लेकिन जब ये अस्पताल इतने बेकार हैं तो गर्व कैसे? हमारी सरकार ने दुनिया को दिखाया कि हम चंद्रयान भेज सकते हैं, लेकिन एक ऑक्सीजन ट्यूब नहीं बदल सकते? ये शर्म की बात है।
मैं जानती हूँ कि ये बहुत बुरा लग रहा है, लेकिन अगर हम सब मिलकर आवाज उठाएँ, तो कुछ बदल सकता है। ये सिर्फ डॉक्टरों और नर्सों की जिम्मेदारी नहीं, हम सबकी है। एक पेटीशन पर हस्ताक्षर करो, एक ट्वीट करो, ये छोटे कदम बड़े बदलाव ला सकते हैं।
यह एक गंभीर नागरिक आपातकाल है। स्वास्थ्य विभाग को तुरंत एक विश्वसनीय रिपोर्ट जारी करनी चाहिए और उसके बाद एक बहु-स्तरीय अंतर्वर्ती योजना के साथ निवेश किया जाना चाहिए। यह तकनीकी त्रुटि नहीं, बल्कि एक नीतिगत विफलता है।
हमारे देश में तो हर चीज़ इसी तरह चलती है - बड़ा घोषणा, छोटा काम। ऑक्सीजन ट्यूब फटी? बस इतना ही। लेकिन जब चुनाव आएगा, तो सब नेता अपने अस्पतालों की तस्वीरें डालेंगे - नए बेड, नए बर्तन, नए बैनर। लेकिन ट्यूब? नहीं, वो तो बाद में।
ये सब इंफ्रास्ट्रक्चर की गलत गवर्नेंस का नतीजा है। डिस्ट्रिक्ट लेवल पर एक इंजीनियरिंग टीम नहीं है, बजट तो बनाया जाता है लेकिन एक्सीक्यूशन नहीं होता। ये जो बजट रखा गया, वो शायद ऑफिस में फाइल में दबा रहा है। असली जिम्मेदारी तो डिपार्टमेंटल ब्लॉकेज की है।
अरे यार, ये तो बस एक ट्यूब फटी है, तुम लोग इतना बड़ा धमाल क्यों कर रहे हो? मैंने तो देखा है, एक घर में पानी का नल टूट गया, तो लोग पूरा बिल्डिंग बंद कर देते हैं। ये तो बस एक अस्पताल है, न कि टाइटैनिक।