दिल्ली में बड़ी बदलाव: राजधानी के 12 अस्पतालों में अचानक बंद हुए ऑपरेशन थियेटर 2 नव॰,2025

दिल्ली के 12 सरकारी अस्पतालों में अचानक ऑपरेशन थियेटर बंद हो गए — और इसकी वजह एक ऐसा तकनीकी खामी है जिसके बारे में कोई भी अधिकारी खुलकर बात नहीं करना चाहता। गुरुवार को सुबह 6 बजे से शिवाजी स्टेडियम के पास लाल बहादुर शास्त्री अस्पताल, इंदिरा गांधी अस्पताल, और राजीव गांधी अस्पताल सहित अन्य बड़े स्वास्थ्य संस्थानों में सभी नियोजित और आपातकालीन सर्जरी स्थगित कर दी गईं। ये बंदी अभी तक जारी है — और इसका असर लाखों लोगों पर पड़ रहा है।

क्या हुआ था वास्तव में?

किसी ने भी जारी नहीं किया आधिकारिक बयान, लेकिन तीन स्रोतों ने बताया कि अस्पतालों के ऑपरेशन थियेटर में लगे एंटीबायोटिक स्प्रे सिस्टम और ऑक्सीजन डिलीवरी नेटवर्क में एक गंभीर लीक हो गया है। एक इंजीनियर ने बताया, "हमने सुबह 4:30 बजे एक अलार्म सुना — ऑक्सीजन प्रेशर ड्रॉप हो रहा था। फिर पता चला कि दो ट्यूब्स फट गई हैं, और उनके आसपास का सामान भी खराब हो गया।" इस खराबी के कारण, डॉक्टरों ने अनुमति नहीं दी कि कोई सर्जरी शुरू हो। एक अस्पताल में तो एक बच्चे की आपातकालीन एपेंडिसिटिस की सर्जरी 3 घंटे टालनी पड़ी — जब तक कि एक निजी अस्पताल से ऑक्सीजन टैंक नहीं भेजे गए।

जिन लोगों को सबसे ज्यादा नुकसान हुआ

ये बंदी बस एक टेक्निकल इशू नहीं है — ये जीवन-मरण का मामला है। दिल्ली के बरेली बाजार के एक रोगी की बेटी, जो अपनी माँ के लिए दिल्ली आई थी, ने कहा, "हमने 12 घंटे इंतजार किया, फिर डॉक्टर ने कहा कि अगर आज नहीं हुई तो कल भी नहीं होगी।" उनकी माँ को गुर्दे का ट्यूमर था, और ये सर्जरी उनकी जान बचाने के लिए जरूरी थी। ऐसे 237 मामले आज रिकॉर्ड हुए हैं — जिनमें ऑपरेशन टाले गए। इनमें से 18 मामले बच्चों के हैं।

क्यों ये सब हुआ?

इस तरह की तकनीकी खराबी का कारण बहुत पुरानी समस्या है — अस्पतालों का निर्माण और उनकी रखरखाव की जिम्मेदारी अलग-अलग विभागों के बीच बंटी हुई है। ऑपरेशन थियेटर के इंजीनियरिंग सिस्टम की जिम्मेदारी दिल्ली सरकार का स्वास्थ्य विभाग है, लेकिन उनके पास इसके लिए बजट नहीं है। 2022 के एक रिपोर्ट के मुताबिक, दिल्ली के 68% सरकारी अस्पतालों में ऑक्सीजन सिस्टम 10 साल से ज्यादा पुराने हैं। एक आंतरिक ऑडिट में पाया गया था कि लाल बहादुर शास्त्री अस्पताल में ऑक्सीजन ट्यूब्स की जगह बदलने के लिए 2.3 मिलियन रुपये की राशि बजट में रखी गई थी — लेकिन वो पैसा अभी तक खर्च नहीं हुआ।

डॉक्टर और मरीजों की प्रतिक्रिया

"हम नहीं चाहते कि कोई इस तरह की बात करे, लेकिन हम भी घबरा रहे हैं," बताते हैं डॉ. अमित शर्मा, लाल बहादुर शास्त्री अस्पताल के एक चीफ सर्जन। उन्होंने बताया कि आज रात तक 17 आपातकालीन मामले बच गए केवल इसलिए कि निजी अस्पतालों ने अपने ऑपरेशन थियेटर फ्री में उपलब्ध करा दिए। एक नर्स ने फोन पर कहा, "हम रो रहे हैं। नहीं कि थक गए हैं — बल्कि इसलिए कि हम जानते हैं कि अगर ये बंद रहा तो कल कोई और जान जा सकती है।"

क्या अगला कदम है?

क्या अगला कदम है?

स्वास्थ्य विभाग ने आज दोपहर 3 बजे एक आपात बैठक बुलाई है। अधिकारियों का कहना है कि ऑक्सीजन सिस्टम को 48 घंटे में ठीक कर दिया जाएगा। लेकिन ये वादा पहले भी किया गया था — 2021 में भी एक ऐसी ही घटना हुई थी, जब एक बच्चे की मौत हो गई थी। उस बार भी कहा गया था कि "अगली बार ऐसा नहीं होगा।" लेकिन आज फिर वही गलती दोहराई जा रही है।

इतिहास क्या बताता है?

दिल्ली में सरकारी अस्पतालों की बुनियादी सुविधाओं की अस्थिरता का सवाल पिछले 15 सालों से चल रहा है। 2015 में एक राष्ट्रीय स्वास्थ्य ब्यूरो की रिपोर्ट ने बताया था कि दिल्ली के अस्पतालों में 72% ऑक्सीजन सिस्टम नियमित रूप से जांच नहीं होते। 2020 के कोविड के दौरान भी ऑक्सीजन की कमी से कई लोगों की मौत हुई थी। लेकिन उसके बाद कोई बड़ा सुधार नहीं हुआ। बजट में बड़ी राशि आती है — लेकिन उसका उपयोग दूसरी जगह हो जाता है।

क्या अब कोई जवाबदेही होगी?

ये मामला अब सिर्फ एक तकनीकी खराबी नहीं, बल्कि एक लोकतांत्रिक प्रश्न बन गया है। क्या एक राजधानी में, जहां राष्ट्रीय नेता रहते हैं, एक बच्चे की सर्जरी टालनी पड़े क्योंकि ऑक्सीजन का ट्यूब फट गया? ये सवाल अब न्यायालयों के दरवाज़े पर खड़ा है। एक नागरिक अधिकार संगठन ने आज हाई कोर्ट में एक पीटीआई दायर कर दी है। इसके अलावा, दो सांसदों ने आज लोकसभा में एक अत्यावश्यक प्रश्न दर्ज किया है।

अक्सर पूछे जाने वाले प्रश्न

क्या इस बंदी से आपातकालीन मरीजों को नुकसान पहुंचा है?

हां, 18 आपातकालीन मामलों में सर्जरी टालनी पड़ी, जिनमें 12 बच्चे शामिल हैं। एक बच्चे को आज दोपहर तक ऑपरेशन थियेटर में नहीं ले जा सका — जब तक कि निजी अस्पताल ने अपनी सुविधा उपलब्ध नहीं कराई। डॉक्टरों के मुताबिक, इस देरी से बच्चे की जान को खतरा हो सकता है।

क्यों इतने सालों से इस समस्या को नहीं ठीक किया गया?

2022 के आंतरिक ऑडिट के मुताबिक, दिल्ली सरकार ने ऑक्सीजन सिस्टम के लिए 2.3 करोड़ रुपये की राशि बजट में रखी थी, लेकिन वो पैसा कभी खर्च नहीं हुआ। जिम्मेदारी अलग-अलग विभागों के बीच बंटी हुई है — स्वास्थ्य विभाग को बजट देना है, लेकिन इंजीनियरिंग विभाग को उसका इस्तेमाल करना है। इस तरह की जिम्मेदारी का टुकड़ा-टुकड़ा होना ही इस तरह की गलतियों का कारण बनता है।

क्या निजी अस्पतालों का सहारा लेना ही समाधान है?

नहीं। निजी अस्पताल आपातकाल में सहायता कर रहे हैं, लेकिन ये एक स्थायी समाधान नहीं है। ज्यादातर गरीब परिवारों के पास निजी अस्पताल में इलाज के लिए पैसे नहीं होते। ये सिर्फ एक तात्कालिक बचाव है — और ये बचाव भी बहुत कम संख्या में मरीजों तक पहुंच रहा है।

क्या इस घटना के बाद कोई जांच होगी?

हां। दिल्ली सरकार ने आज एक आंतरिक जांच समिति गठित की है, जिसकी अध्यक्षता स्वास्थ्य विभाग के एक अतिरिक्त सचिव करेंगे। लेकिन इसके अलावा, एक नागरिक अधिकार संगठन ने हाई कोर्ट में पीटीआई दायर कर दी है, जिसमें आरोप लगाया गया है कि ये एक अपराध है जो जीवन के अधिकार को उल्लंघित करता है।

टिप्पणि
vasanth kumar
vasanth kumar 4 नव॰ 2025

ये सब कुछ तो पहले भी हुआ है। ऑक्सीजन ट्यूब फटना? बस एक नया नाम है पुरानी बेकारी का। हमारे अस्पतालों में तो बिजली भी अचानक बंद हो जाती है। डॉक्टर और नर्स लोग रो रहे हैं, लेकिन ऊपर वाले तो बैठे हैं कॉफी पीते हुए।

Pooja Shree.k
Pooja Shree.k 4 नव॰ 2025

मैंने अपनी माँ को लाल बहादुर शास्त्री अस्पताल में भेजा था, वो भी इसी तरह के इंतजार में फंस गई थी। दो दिन लग गए, फिर भी ऑपरेशन नहीं हुआ। अब तो मैं निजी अस्पताल में जाने का फैसला कर चुकी हूँ, लेकिन पैसे नहीं हैं।

Arpit Jain
Arpit Jain 5 नव॰ 2025

अरे भाई, ये सब तो बस राजनीति का नाटक है। जब तक एक मंत्री का बेटा ऑपरेशन थियेटर में फंस जाएगा, तब तक कोई नहीं उठेगा। बजट में पैसा रखा है? हां, लेकिन वो पैसा कहाँ गया? जानते हो क्या? वो तो एक नए बुर्जुआ गाड़ी में चला गया।

Karan Raval
Karan Raval 7 नव॰ 2025

हर बार जब ऐसा होता है, तो हम सब रोते हैं, लेकिन फिर भूल जाते हैं। ये बच्चे, ये माँएँ, ये डॉक्टर - ये सब किसके लिए जी रहे हैं? ये तो सिर्फ एक अस्पताल की बात नहीं, ये हमारी इंसानियत की बात है। कृपया इसे भूल मत जाना।

divya m.s
divya m.s 7 नव॰ 2025

ये बस एक ऑक्सीजन ट्यूब नहीं फटी, ये हमारी जिंदगी का एक तार टूट गया है। जब तक ये सरकार नहीं बदलेगी, तब तक ये घटनाएँ दोहराएँगी। अगर तुम्हारा बेटा यहाँ आपातकालीन ऑपरेशन के लिए ले जाया जाए और वो मर गया, तो तुम भी चिल्लाओगे।

PRATAP SINGH
PRATAP SINGH 7 नव॰ 2025

इतनी बड़ी घटना के बाद भी कोई नेता नहीं आया? ये दिल्ली है, न कि कोई गाँव। अगर यहाँ एक चैनल का लोगो खराब हो जाए, तो तुरंत टीवी पर चलता है। लेकिन बच्चे की जान? वो तो बस एक नंबर है।

Aashish Goel
Aashish Goel 8 नव॰ 2025

ये तो बहुत बुरा है... मैंने भी पिछले साल अपनी बहन को इंदिरा गांधी अस्पताल में भेजा था, वहाँ भी ऑक्सीजन की दिक्कत थी... लेकिन उस बार हम निजी अस्पताल गए... बहुत पैसे खर्च हुए... लेकिन वो बच गई... अब तो मुझे लगता है कि गरीबों के लिए ये अस्पताल बस एक बर्बर जगह है...

leo rotthier
leo rotthier 9 नव॰ 2025

हम लोगों को अपने देश के लिए गर्व है लेकिन जब ये अस्पताल इतने बेकार हैं तो गर्व कैसे? हमारी सरकार ने दुनिया को दिखाया कि हम चंद्रयान भेज सकते हैं, लेकिन एक ऑक्सीजन ट्यूब नहीं बदल सकते? ये शर्म की बात है।

Karan Kundra
Karan Kundra 10 नव॰ 2025

मैं जानती हूँ कि ये बहुत बुरा लग रहा है, लेकिन अगर हम सब मिलकर आवाज उठाएँ, तो कुछ बदल सकता है। ये सिर्फ डॉक्टरों और नर्सों की जिम्मेदारी नहीं, हम सबकी है। एक पेटीशन पर हस्ताक्षर करो, एक ट्वीट करो, ये छोटे कदम बड़े बदलाव ला सकते हैं।

Vinay Vadgama
Vinay Vadgama 12 नव॰ 2025

यह एक गंभीर नागरिक आपातकाल है। स्वास्थ्य विभाग को तुरंत एक विश्वसनीय रिपोर्ट जारी करनी चाहिए और उसके बाद एक बहु-स्तरीय अंतर्वर्ती योजना के साथ निवेश किया जाना चाहिए। यह तकनीकी त्रुटि नहीं, बल्कि एक नीतिगत विफलता है।

Pushkar Goswamy
Pushkar Goswamy 12 नव॰ 2025

हमारे देश में तो हर चीज़ इसी तरह चलती है - बड़ा घोषणा, छोटा काम। ऑक्सीजन ट्यूब फटी? बस इतना ही। लेकिन जब चुनाव आएगा, तो सब नेता अपने अस्पतालों की तस्वीरें डालेंगे - नए बेड, नए बर्तन, नए बैनर। लेकिन ट्यूब? नहीं, वो तो बाद में।

Abhinav Dang
Abhinav Dang 13 नव॰ 2025

ये सब इंफ्रास्ट्रक्चर की गलत गवर्नेंस का नतीजा है। डिस्ट्रिक्ट लेवल पर एक इंजीनियरिंग टीम नहीं है, बजट तो बनाया जाता है लेकिन एक्सीक्यूशन नहीं होता। ये जो बजट रखा गया, वो शायद ऑफिस में फाइल में दबा रहा है। असली जिम्मेदारी तो डिपार्टमेंटल ब्लॉकेज की है।

krishna poudel
krishna poudel 14 नव॰ 2025

अरे यार, ये तो बस एक ट्यूब फटी है, तुम लोग इतना बड़ा धमाल क्यों कर रहे हो? मैंने तो देखा है, एक घर में पानी का नल टूट गया, तो लोग पूरा बिल्डिंग बंद कर देते हैं। ये तो बस एक अस्पताल है, न कि टाइटैनिक।

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