हिमाचल प्रदेश में संविदा कर्मचारियों की नियमितीकरण की मांग: 2024 तक के लिए कटऑफ बहाली 2 अप्रैल,2025

हिमाचल प्रदेश में संविदा कर्मचारियों का संघर्ष

हिमाचल प्रदेश में संविदा पर कार्यरत कर्मचारी राज्य सरकार से मांग कर रहे हैं कि 30 सितंबर 2024 की कट-ऑफ तिथि को बहाल किया जाए, जो राज्य सरकार द्वारा दिसंबर 2023 में जारी की गई अधिसूचना के द्वारा मार्च 31, 2024 तक सीमित कर दी गई है। कर्मचारियों का कहना है कि इस नई नीति के कारण वे एक बड़े अनिश्चित समय का सामना कर रहे हैं क्योंकि मार्च के बाद नियुक्त किए गए कर्मचारियों को नियमित होने में तीन साल तक इंतजार करना पड़ सकता है, भले ही वे अपना दो साल का संविदा कार्यकाल पूरा कर चुके हों।

इस मामले में हिमाचल प्रदेश सर्व अनुबंध कर्मचरी महासंघ के अध्यक्ष, कमेश्वर शर्मा, ने इसका जिक्र करते हुए कहा कि इस नीति के चलते कर्मचारियों की वित्तीय और वरिष्ठता पर नुकसान हो रहा है, क्योंकि अब नियमितीकरण के आदेश संविदा पूर्ण होने की तिथि की बजाय नियमितीकरण की तिथि से प्रभावी माने जा रहे हैं।

असेंबली में बिल और उसकी प्रतिक्रिया

असेंबली में बिल और उसकी प्रतिक्रिया

हिमाचल प्रदेश विधान सभा ने दिसंबर 2024 में एक विधेयक पारित किया, जिसमें संविदा सेवा अवधि को वरिष्ठता और वित्तीय लाभ की गणना से बाहर रखा गया। मुख्यमंत्री सुखविंदर सिंह सुक्खू ने इसे नियमित कर्मचारियों के अधिकारों की रक्षा और वित्तीय बोझ को कम करने के लिए आवश्यक बताया। लेकिन विपक्षी सदस्यों ने इसे पूर्वव्यापी और उन संविदा कर्मचारियों के लिए अन्यायपूर्ण बताया, जिन्हें पहले अदालत के आदेशों के तहत लाभ मिला था।

सरकार की दिसंबर 2023 की निर्देशिका में कहा गया है कि नियमितीकरण के लिए रिक्तियों की आवश्यकता होती है, और इसमें चिकित्सा फिटनेस और भर्ती नियमों का पालन करना जरूरी होता है। उम्मीदवारों की एक स्क्रीनिंग कमेटी द्वारा जांच की जाती है, जिसके बाद उन्हें न्यूनतम वेतनमान के आधार पर नियुक्त किया जाता है, जो नियमितीकरण की तिथि से प्रभावी होता है।

टिप्पणि
Kunal Agarwal
Kunal Agarwal 3 अप्रैल 2025

ये सरकार तो हमेशा बड़े बड़े वादे करती है, लेकिन जब आता है तो बस लिख देती है! जिन लोगों ने दिन-रात काम किया, उनकी नौकरी का भविष्य अब एक निर्देशिका में बंद हो गया है। ये क्या बकवास है?!?!

Abhishek Ambat
Abhishek Ambat 3 अप्रैल 2025

इसका मतलब है कि तुम जितना भी मेहनत करोगे, उतना ही तुम्हारा भविष्य टूटता रहेगा 😔
क्या ये देश है या एक बड़ा फैक्ट्री जहाँ इंसानों को बस बार-बार इस्तेमाल किया जाता है? 🤔

Meenakshi Bharat
Meenakshi Bharat 5 अप्रैल 2025

यह नीति जिस तरह से डिज़ाइन की गई है, वह एक विशिष्ट सामाजिक अन्याय को वैध ठहरा रही है, जिसमें उन लोगों को अनदेखा किया जा रहा है जिन्होंने राज्य के लिए अपना जीवन लगाया है, बिना किसी स्थायी सुरक्षा के, बिना किसी आशा के, बस इस उम्मीद के कि कभी न्याय मिलेगा, लेकिन अब यह उम्मीद भी एक अधिसूचना के तहत रद्द कर दी गई है, जिसमें वित्तीय और वरिष्ठता दोनों को नियमितीकरण की तिथि से गिना जाने लगा है, जो कि बिल्कुल अनुचित है, क्योंकि यह उनके वास्तविक योगदान को नहीं, बल्कि एक ब्यूरोक्रेटिक तारीख को आधार बना रहा है, और यही तो एक न्यायपालिका के लिए अस्वीकार्य है, क्योंकि न्याय का अर्थ है न्याय, न कि एक फाइल की तारीख।

Sarith Koottalakkal
Sarith Koottalakkal 6 अप्रैल 2025

इस बार तो बस बंद कर दो ये झूठे वादे, लोगों को जिंदा रखो न कि दस साल तक इंतजार करवाओ

Sai Sujith Poosarla
Sai Sujith Poosarla 6 अप्रैल 2025

ये सब लोग तो बस भारत को तोड़ने की कोशिश कर रहे हैं! जिनके पास नौकरी है वो खुश हो जाएं, बाकी के लिए तो देश नहीं बनता, बस बहाना बनता है! अगर तुम नहीं बन सकते तो फिर निकल जाओ! 🇮🇳

Sri Vrushank
Sri Vrushank 8 अप्रैल 2025

ये सब एक बड़ा साजिश है जिसमें बड़े लोग इन लोगों को नियमित नहीं करने दे रहे क्योंकि वो चाहते हैं कि ये लोग हमेशा डरे रहें और बिना बोले काम करते रहें और फिर जब कोई आवाज उठाएगा तो उसे गैरकानूनी बता दिया जाएगा

Praveen S
Praveen S 9 अप्रैल 2025

हम जब भी नीति बनाते हैं, तो इंसान को नहीं, बल्कि फाइलों को याद करते हैं।
ये लोग जिन्होंने दिन भर अस्पतालों में नौकरी की, स्कूलों में पढ़ाया, गांवों में डाक बांटा-उनका योगदान एक तारीख से नहीं, एक दिन के काम से नहीं, बल्कि एक जीवन के बलिदान से मापा जाना चाहिए।
ये नीति न्याय नहीं, बस एक ब्यूरोक्रेटिक चाल है।
क्या हम अपने देश में इतना निर्मम हो चुके हैं कि एक आदमी का जीवन अब एक अधिसूचना के अनुच्छेद में बंद हो जाए?
हम जिस चीज को न्याय कहते हैं, वो अब एक फॉर्मूला बन चुका है-जिसका कोई इंसानी आधार नहीं।
इसका असर बस एक नौकरी नहीं, बल्कि एक पीढ़ी के विश्वास पर पड़ेगा।
हम जब तक इंसान को नहीं देखेंगे, तब तक ये देश बस एक फाइल कैबिनेट बना रहेगा।

mohit malhotra
mohit malhotra 9 अप्रैल 2025

इस नीति में वरिष्ठता और वित्तीय लाभ की गणना के लिए नियमितीकरण की तिथि को आधार बनाना, एक विधिक रूप से अनुचित अंतराल उत्पन्न करता है, जिसका असर संविदा कर्मचारियों के लिए एक लंबे समय तक के अस्थिरता और अनिश्चितता के रूप में पड़ता है।
इसके अलावा, यह एक ऐसी व्यवस्था को बढ़ावा देता है जिसमें कर्मचारियों की योग्यता और अनुभव को अनदेखा कर दिया जाता है, जिसके परिणामस्वरूप नौकरी के अंतर्गत एक अस्थायी और अस्थिर श्रम बाजार बन जाता है, जो सामाजिक और आर्थिक रूप से अस्थिरता को बढ़ाता है।
एक न्यायपालिका के अधिकारियों के लिए यह एक न्याय के बजाय एक नियमितीकरण की तिथि को प्राथमिकता देना, एक नीतिगत विफलता है, जिसे तुरंत समायोजित किया जाना चाहिए।

Gaurav Mishra
Gaurav Mishra 10 अप्रैल 2025

नौकरी नहीं दी गई तो क्या हुआ? बस निकल जाओ।

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