18
जुल॰,2024
कर्नाटक सरकार ने एक विवादास्पद नौकरी आरक्षण बिल की घोषणा की थी, जिसका उद्देश्य राज्य में स्थानीय कन्नडिगाओं के लिए निजी क्षेत्र की नौकरियों में आरक्षण सुनिश्चित करना था। इस बिल का नाम 'कर्नाटक स्टेट इम्प्लॉयमेंट ऑफ लोकल कैंडिडेट्स इन द इंडस्ट्रीज, फैक्ट्ररीज एंड अदर एस्टेब्लिशमेंट्स बिल, 2024' रखा गया था। बिल के अनुसार, निजी क्षेत्र के संगठनों, उद्योगों और उद्यमों में 50% प्रबंधन श्रेणी और 70% गैर-प्रबंधन श्रेणी की नौकरियों में स्थानीय उम्मीदवारों को रखा जाना आवश्यक था।
बिल में यह प्रावधान भी था कि यदि उम्मीदवारों के पास माध्यमिक विद्यालय प्रमाणपत्र में कन्नड़ भाषा नहीं है, तो उन्हें एक कन्नड़ प्रवीणता परीक्षा उत्तीर्ण करनी होगी। इस नियम को लागू करने का उद्देश्य स्थानीय भाषा और संस्कृति का संरक्षण करना था।
जैसे ही इस बिल की घोषणा की गई, उद्योग जगत से भारी आलोचना शुरू हो गई। नैसकॉम और उद्योग जगत के प्रमुख नेताओं ने, जिसमें मोहनदास पै, किरण मजूमदार-शॉ और अनिल मिश्रा शामिल थे, इस बिल को 'विवादास्पद', 'प्रतिगामी' और 'संविधान विरोधी' बताया। उनका मानना था कि यह बिल कंपनियों को राज्य से बाहर धकेल देगा, स्टार्टअप्स को बाधित करेगा और कुशल प्रतिभा की कमी पैदा करेगा। आलोचकों ने यह भी कहा कि यह कदम कर्नाटक की महाराष्ट्र को सबसे बड़े जीडीपी योगदानकर्ता राज्य के रूप में प्रतिस्थापित करने की महत्वाकांक्षा को नुकसान पहुंचाएगा।
मुख्यमंत्री सिद्धारमैया ने उद्योग जगत की आलोचनाओं और संभावित नकारात्मक प्रभावों को ध्यान में रखते हुए घोषणा की कि इस बिल को फिलहाल रोक दिया जाएगा। उन्होंने कहा कि सरकार इस बिल की समीक्षा करेगी और भविष्य की कार्रवाई का निर्णय आने वाले दिनों में किया जाएगा। यह कदम सरकार की शुरुआत में स्थानीय नौकरी के अवसरों को प्राथमिकता देने के रुख से एक कदम पीछे हटते हुए देखा जा रहा है।
राजनीतिक विश्लेषकों का मानना है कि सरकार ने यह कदम आगामी चुनावों में संभावित नुकसान से बचने के लिए उठाया है। उन्होंने कहा कि इस मामले में उद्योग जगत और अन्य हितधारकों की राय को गंभीरता से लिया जाना चाहिए।
हालांकि, विभिन्न स्थानीय नागरिक और युवा इस बिल का समर्थन कर रहे थे। उनके अनुसार, इस बिल से उन्हें अधिक रोजगार के अवसर मिल सकते थे और कर्नाटक के युवाओं के भविष्य को मजबूत किया जा सकता था। इस विचारधारा के समर्थकों का मानना था कि राज्य के विकास के लिए स्थानीय नागरिकों को प्राथमिकता दी जानी चाहिए।
उद्योग जगत ने यह भी चेतावनी दी कि इस प्रकार के कानून आर्थिक गतिविधियों को बाधित कर सकते हैं। विशेषकर आईटी सेक्टर, जो कर्नाटक की अर्थव्यवस्था का प्रमुख हिस्सा है, पर इसका नकारात्मक प्रभाव पड़ सकता है।
सरकार को यह संतुलन बनाना होगा कि वह कैसे स्थानीय रोजगार को बढ़ावा दे सकती है और साथ ही विदेशी निवेश और स्टार्टअप कल्चर को भी आकर्षित कर सकती है।
मुख्यमंत्री सिद्धारमैया की इस घोषणा के बाद, उम्मीद है कि उद्योग जगत और सरकार के बीच एक संतुलित और न्यायसंगत समाधान तलाशा जाएगा। इसमें दोनों पक्षों के हितों को ध्यान में रखा जाएगा और यह सुनिश्चित किया जाएगा कि कर्नाटक राज्य का समग्र विकास हो सके।
आने वाले दिनों में हम देखेंगे कि क्या सरकार इस मुद्दे पर कोई नया समाधान प्रस्तुत करती है, जो कि न केवल स्थानीय नागरिकों के हित में हो, बल्कि राज्य की अर्थव्यवस्था को भी नुकसान न पहुंचाए।
ये सब नौकरी आरक्षण का झंडा फहराना बस एक राजनीतिक शोर है। असली समस्या तो शिक्षा की कमी है। जब तक कन्नड़ माध्यम के बच्चे भी कंप्यूटर साइंस में डिग्री नहीं लेंगे, तब तक ये बिल बस एक शोरबाजी है।
मुझे लगता है कि ये बिल एक अच्छा शुरुआती कदम था। हमारे युवाओं को घर के पास नौकरी मिलनी चाहिए। निजी कंपनियां भी थोड़ा समाज के प्रति जिम्मेदार हो सकती हैं।
यह बिल वास्तव में एक आध्यात्मिक अर्थ में भारतीय संस्कृति के प्रति सम्मान का प्रतीक है। भाषा अभी भी हमारी पहचान है। जो लोग इसे संविधान विरोधी कहते हैं, वे इतिहास को भूल गए हैं।
ये सब बकवास है। जिन्होंने ये बिल बनाया, उनकी बुद्धि का एक भी टुकड़ा नहीं है। कंपनियां बाहर जाएंगी, नौकरियां गायब हो जाएंगी, और तुम लोग घर पर बैठे रहोगे। अपनी बुद्धि का इस्तेमाल करो।
इस बिल के बारे में, मुझे लगता है, कि यह एक ऐसा नियम है, जो लोगों को उनकी भाषा के साथ जोड़ता है, और यह जरूरी है, क्योंकि भाषा के बिना, संस्कृति का कोई अस्तित्व नहीं होता।
हमें बिल को रोकने की जगह, इसे बेहतर बनाने की कोशिश करनी चाहिए। शायद केवल नए नौकरी वाले लोगों के लिए ये लागू हो, और बाकी को छोड़ दिया जाए।
अरे भाई, तुम लोग इतना गंभीर क्यों हो गए? ये बिल तो एक बड़ा टेस्ट केस है। अगर कर्नाटक इसे लागू कर सकता है, तो दूसरे राज्य भी कर सकते हैं। लेकिन अगर ये फेल हुआ, तो हम अगले दशक तक इसके बारे में बात करते रहेंगे।
सरकार ने बिल रोक दिया अच्छा किया। अब बस ये देखना है कि उद्योग वाले क्या करते हैं।
तुम सब लोग बहुत नाटकीय हो। ये बिल तो बस एक और राजनीतिक चाल है। कोई भी वास्तविक समाधान नहीं है। बस चुनाव के लिए नाटक कर रहे हो।
क्या आपने कभी सोचा है कि जब हम कन्नड़ भाषा को बचाने की बात कर रहे हैं, तो क्या हम अपने युवाओं को दुनिया के साथ जोड़ रहे हैं? 🌍 ये बिल एक बंद कमरे में बंद कर देगा हमें।
मैं इस बिल के बारे में इतना आश्वस्त नहीं हूं कि यह लंबे समय तक काम करेगा, क्योंकि आर्थिक विकास और सांस्कृतिक संरक्षण के बीच एक बहुत ही सूक्ष्म संतुलन है, और यह संतुलन बहुत ही आसानी से बिगड़ सकता है, और इसलिए यह बिल एक बहुत ही सावधानी से लिखा गया होना चाहिए, जिसमें विशेष ध्यान दिया गया हो कि यह निजी क्षेत्र के लिए अत्यधिक बोझ न बने, और न ही यह राज्य के विकास के लिए बाधा बने।
मुझे लगता है कि अगर ये बिल नहीं रोका जाता, तो हमारे बच्चे बाहर भाग जाते। कंपनियां बस बंगलुरु छोड़ देतीं। अब तो बहुत अच्छा हुआ।
अगर तुम बिल लागू करते हो तो तुम देश को बेच रहे हो। ये बिल तो एक अंग्रेजी राज का बच्चा है। हमें अपनी जमीन के लिए लड़ना होगा, न कि बोली के लिए।
ये सब एक बड़ी साजिश है। अमेरिका और चीन ने इसे बनवाया है ताकि हमारे युवा बाहर जाएं और हमारे संसाधन खाली हो जाएं। ये बिल रोकना भी एक हिस्सा है।