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नव॰,2024
महाराष्ट्र विधानसभा चुनाव के परिणामों ने एक बार फिर राज्य की राजनीति में हलचल मचा दी है। प्रदेश की विधानसभा को भंग कर दिया गया है। मुख्यमंत्री एकनाथ शिंदे ने अपने पद से इस्तीफा दे दिया है लेकिन वह कार्यवाहक मुख्यमंत्री के रूप में सेवा दे रहे हैं। इसका कारण यह है कि भारतीय जनता पार्टी के नेतृत्व में महायूति गठबंधन ने जबरदस्त जीत दर्ज की है, जिसमें उसने 288 सीटों में से 235 पर कब्जा किया है।
महायूति की इस जीत में भाजपा की भूमिका महत्वपूर्ण रही है, जिसने कुल 131 सीटें जीती हैं। उनके साथ शिवसेना ने 57 सीटें और राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी (राकांपा) ने 41 सीटें जीती हैं। यह गठबंधन महाराष्ट्र की राजनीति में एक महत्वपूर्ण मोड़ साबित हुआ है। इस जीत में जिस तरह से महायूति ने राज्य के विभिन्न मुद्दों पर ध्यान केंद्रित किया, वह उल्लेखनीय है।
अब सभी की नजर इस बात पर टिकी है कि अगला मुख्यमंत्री कौन होगा। भाजपा अपने वरिष्ठ नेता देवेंद्र फडणवीस का समर्थन कर रही है, जबकि शिवसेना का समर्थन एकनाथ शिंदे को है। गठबंधन के अंदर कई मुद्दों पर चर्चाएं जारी हैं ताकि एक सुचारू सरकार गठन का तरीका खोजा जा सके। राकांपा नेता और उपमुख्यमंत्री अजीत पवार ने भी कहा है कि सरकार के गठन के लिए वार्ता चल रही है।
मुख्यमंत्री पद के लिए इस लड़ाई में 'लड़की बहिन स्कीम' की भूमिका को नजरअंदाज नहीं किया जा सकता। इस योजना ने महायूति की जीत में बड़ा योगदान दिया है। इसके माध्यम से महिलाओं को सशक्त बनाने का प्रयास किया गया है, जो एक सुर देने की दिशा में महत्वपूर्ण साबित हुआ है।
इस पूरे परिदृश्य के बीच, भाजपा के वरिष्ठ नेता देवेंद्र फडणवीस दिल्ली पहुंचे हैं, जहां उन्होंने गृह मंत्री अमित शाह और भाजपा अध्यक्ष जे.पी. नड्डा के साथ बैठक की है। कहा जा रहा है कि इस बैठक में महाराष्ट्र की नई सरकार के गठन पर महत्वपूर्ण चर्चाएं हुई हैं।
शिवसेना प्रमुख एकनाथ शिंदे ने अपने समर्थकों से अपील की है कि वे मुंबई में बड़ी संख्या में ना जुटें, क्योंकि इससे राज्यों में किसी प्रकार की अव्यवस्था उत्पन्न हो सकती है। इसके साथ ही कहा जा रहा है कि त्वरित निर्णय लेने के लिए एक केंद्रीय अवलोकक नियुक्त किया गया है।
इस प्रकार से महाराष्ट्र में राजनीतिक घटनाक्रम ने सभी के लिए एक उदाहरण पेश किया है कि कैसे गठबंधन की राजनीति में सामंजस्य बनाना होता है। लोगों की उम्मीदें और भविष्य की दिशा सरकार के इन निर्णयों पर निर्भर करेगी।
ये सब नेता अपनी जेब भरने के लिए राजनीति करते हैं। शिंदे या फडणवीस, कोई भी आएगा तो वही चलन होगा। गरीबों को क्या मिलेगा? नुकसान ही मिलेगा।
महायूति की जीत बस एक बड़ा धोखा है जिसे लोग अब सच समझने लगे हैं असली ताकत तो दिल्ली में है और यहां के लोग बस नाटक कर रहे हैं
राजनीति में गठबंधन का महत्व तो हमेशा से रहा है, लेकिन अब यह बस एक व्यापार बन गया है। कोई नीति नहीं, कोई दृष्टि नहीं, बस सीटों का बंटवारा। यही तो देश की असली तबाही है।
लोकतंत्र के अंतर्गत गठबंधन का निर्माण एक आवश्यक अंग है, लेकिन इसके लिए सामंजस्य और विश्वास की आवश्यकता होती है। यदि इन दोनों का अभाव है, तो सरकार का स्थायी होना असंभव है।
फडणवीस आएगा तो बात बनेगी। शिंदे को तो बस एक टाइमर दिया गया है।
ये सब लोग अपने नाम के लिए लड़ रहे हैं, देश के लिए नहीं। जब तक लोग इनके लिए वोट देते रहेंगे, ये लोग बने रहेंगे। बस इतना ही।
महाराष्ट्र की ये राजनीति तो एक नाटक है, जिसमें हर कोई अपना भूमिका अदा कर रहा है। लेकिन असली चीज़ वो है जो घरों में हो रहा है-महिलाएं अब अपने बच्चों को स्कूल भेज रही हैं, बिजली आ रही है, पानी मिल रहा है। ये तो वो असली जीत है।
क्या ये सब बातें तो बस टीवी पर चल रही हैं? मैंने तो अपने गांव में देखा कि लोग अभी भी बिजली के लिए लड़ रहे हैं। ये सब नेता तो बस फोटो खिंचवा रहे हैं।
भाजपा ने जीत दर्ज की है, ये देश की जीत है। कोई भी जो इसके खिलाफ है, वो देश के खिलाफ है। ये बात समझ लो।
क्या शिंदे के समर्थन में आने वाले लोगों को भी उनके लिए एक भूमिका मिलेगी? या फिर ये सब बस एक बड़ा धोखा है जिसमें लोगों को बाहर रख दिया गया है?
अरे भाई, ये सब तो पहले भी हुआ है। 2014 में भी ऐसा ही हुआ था, फिर 2019 में, अब फिर से। लोग एक जैसे वादे करते हैं, एक जैसे चुनाव लड़ते हैं, और एक जैसे भूल जाते हैं। ये देश तो एक घूंटे की याददाश्त वाला है। कोई नहीं सीखता, कोई नहीं बदलता। ये तो अब एक बीमारी हो गई है।
मैंने तो सुना था कि शिंदे ने फडणवीस को नहीं छोड़ने देना है और फडणवीस भी शिंदे को बर्खास्त नहीं करना चाहते। अब तो ये दोनों एक दूसरे के साथ बैठकर बात कर रहे हैं और बाहर से लोग देख रहे हैं कि ये लोग कैसे अपनी बात बनाते हैं।
ये सब बदलाव बस शुरुआत है। अगर हम एक साथ आएं, तो कोई भी नेता हमें रोक नहीं सकता। बस एक बार अपने घर से निकलो, अपने गांव की बात करो, और देखो कैसे बदलाव आता है। 💪
क्या सरकार का गठन तो बस एक शक्ति का संकेत है या फिर ये एक विचार का भी संकेत है? क्या हम एक ऐसी सरकार चाहते हैं जो सिर्फ जीते हुए है या एक ऐसी जो समझे हुए है?
लोग तो बस इतना चाहते हैं कि कोई न कोई आए और बोल दे कि सब ठीक हो जाएगा। लेकिन असली बात तो ये है कि हम खुद बदले। नेता तो बस दर्पण हैं। 😊
इस राजनीति में एक अदृश्य शक्ति है... जो नेताओं को निर्देश देती है... जो दिल्ली में बैठकर फैसले लेती है... जिसके बारे में कोई बात नहीं करता... लेकिन सब जानते हैं... और फिर भी चुप रहते हैं... क्योंकि डर है...
क्या आपने कभी सोचा कि जब भी गठबंधन बनता है, तो वो बस एक नए राज्य की शुरुआत होती है? एक ऐसा राज्य जहां सच बोलना गुनाह है और झूठ बोलना नीति है?
ये सब लोग तो बस अपने नाम के लिए लड़ रहे हैं। असली जीत तो उन लोगों की है जो अपने घरों में बैठकर खाना खा रहे हैं।
महायूति की जीत बस एक बड़ी गलती है। इससे असली लोगों को कोई फायदा नहीं होगा। बस एक नया नेता आएगा और फिर वही चलन।
हर बदलाव का एक अर्थ होता है। शायद ये बदलाव असली बदलाव की शुरुआत है। चलो उम्मीद रखते हैं। 🙏