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अक्तू॰,2025
जब जॉन हीली, ब्रिटिश रक्षा मंत्री ने रॉयल एयर फ़ोर्स (RAF) की 9 अक्टूबर 2025 को शुरू की गई 12‑घंटे की लंबी निगरानी उड़ान का उल्लेख किया, तो यह स्पष्ट हो गया कि यह नाटो की पूर्वी सीमा निगरानी मिशन का ठोस कदम है। दो ब्रिटिश विमान – RC‑135W रिवेट जॉइंट (कोड‑नाम ASCOT7209) और P‑8A पोसाइडन – को संयुक्त राज्य एयर फ़ोर्स (USAF) के KC‑135 स्ट्रैटोटैंकर (कोड‑नाम LAGER51) ने मध्य‑आकाश में ईंधन दिया। यह पूरा समूह बर्लिंटन‑हैवलिंग्टन (UK) से उठकर आर्कटिक क्षेत्र‑से‑बाल्टिक तक, बेलारूस, यूक्रेन और रूस की सीमाओं के पास 10 000 मील से अधिक उड़ान भरते हुए रशियाई वायु उल्लंघनों के जवाब में तलवार की धुंधली किनारी को दर्शाया।
सितंबर 2025 में कई रूसी वायु अतिक्रमणों ने नाटो सदस्य देशों को चौंका दिया। पोलैंड ने शुरुआती महीने में रूसी ड्रोन को नष्ट किया, जबकि 12 सितंबर को रोमानिया की हवाई सीमा एक अनअग्रसित ड्रोन द्वारा उल्लंघित हुई। 19 सितंबर को एस्टोनिया की गैल्प ऑफ़ फ़िनलैंड में तीन रूसी MiG‑31 ने 12 मिनट तक प्रवेश किया, जिससे एस्टोनियाई सरकार ने नाटो के अनुच्छेद‑4 के तहत परामर्श शुरू किया। इन घटनाओं ने नाटो के पूर्वी फ्लैंक में हवाई निगरानी को तीव्र कर दिया।
ऑपरेशन का आधिकारिक नाम पूर्वी सीमा निगरानी मिशन 2025रूस‑बेलारूस‑यूक्रेन सीमा रखा गया है। RC‑135W मुख्य रूप से इलेक्ट्रॉनिक सिग्नल इंटेलिजेंस (ELINT) एकत्र करता है, जबकि P‑8A समुद्री डोमेन की सतह पर संभावित खतरों को ट्रैक करता है। KC‑135 ने दो बार ईंधन भरे, जिससे ब्रिटिश विमानों को बिना लैंडिंग के पूरे पथ पर बने रहने की सुविधा मिली।
जॉन हीली ने कहा, “यह एक उल्लेखनीय संयुक्त मिशन है जो हमारी बुनियादी जानकारी को बढ़ाता है और पुतिन को एक ठोस संदेश देता है।” उसी समय, यूएसएएफ के प्रमुख ने इस समर्थन को “ट्रांस‑अटलांटिक एकता” कहा। रूसी विदेश मंत्रियों ने टिप्पणी से बचते हुए कहा कि “नाटो की ऐसी निगरानी सीमा के निकट असुरक्षा पैदा करती है।”
नाटो की कमान‑संरचना, जो नाटो एयर कमांड द्वारा रैमस्टीन (जर्मनी) में स्थापित है, ने सभी चरणों को सामरिक रूप से समन्वित किया। ब्रिटिश 51 Squadron (RC‑135W) और 120 Squadron (P‑8A) ने क्रमशः अपने‑अपने बेस से विमान को तैनात किया, जबकि यूएसएएफ की 100th Air Refueling Wing ने Mildenhall में KC‑135 को संचालन में रखा।
यह मिशन नाटो के “एन्हांस्ड एयर पोलिसिंग” के बदलावों को दर्शाता है, जो 2014 में क्रीमिया कब्जे के बाद शुरू हुआ। विशेषज्ञ बताते हैं कि लगातार हवाई निगरानी रशिया को सीमा‑उल्लंघन से रोकने के लिए आर्थिक और नीतिगत लागत बढ़ा देती है। एक सैन्य विश्लेषक ने कहा, “ऐसी उड़ानें न केवल आँकड़े एकत्र करती हैं, बल्कि यूक्रेन‑रक्षा के लिए गहरी बौधिक रक्षा प्रदान करती हैं।”
इसी बीच, सामुदायिक स्तर पर पोलिश, रोमानियाई और एस्टोनियाई नागरिकों ने अपने‑अपने राष्ट्रों की सुरक्षा में नाटो की भूमिका को सराहा। कई सोशल‑मीडिया पोस्ट्स में “हम सुरक्षित हैं क्योंकि नाटो चौकस है” जैसा भाव पाया गया।
नाटो का अगला कदम अभी स्पष्ट नहीं है, पर संकेत मिलता है कि यह प्रकार की दीर्घ‑अवधि निगरानी कई बार दोहराई जा सकती है। रक्षा विशेषज्ञ अनुमान लगाते हैं कि अगले वर्ष में कम से कम दो ऐसे मिशन लागू हो सकते हैं, विशेषकर बर्लिन‑वारसॉ‑बेलग्रेड कनेक्शन पर। साथ ही, यूएसएफ़ और यूके के बीच ईंधन समर्थन को और अधिक स्वचालित करने के लिए नई तकनीकों का परीक्षण चल रहा है।
संक्षेप में, 9‑10 अक्टूबर की यह संयुक्त ब्रिटिश‑अमेरिकी उड़ान न केवल रूसी अतिक्रमणों को रोकने की नाटो की दृढ़ संकल्प को दिखाती है, बल्कि यूरोप में सुरक्षा के भविष्य के लिये नई मानदंड भी स्थापित करती है।
मिशन में एलेकट्रॉनिक इंटेलिजेंस (RC‑135W) और समुद्री निगरानी (P‑8A) दोनों को संयोजित किया गया, जिससे रूसी सिग्नल और नौसैनिक गतिविधियों पर वास्तविक‑समय जानकारी मिलती है। यह नाटो को संभावित खतरे को जल्दी पहचान कर प्रतिक्रिया देने की क्षमता देता है, जिससे सदस्य देशों की सीमाएँ अधिक सुरक्षित रहती हैं।
विश्लेषकों का मानना है कि नाटो के एन्हांस्ड एयर पोलिसिंग के हिस्से के रूप में ऐसी लंबी‑दूरी निगरानी मिशनें नियमित रूप से हो सकती हैं, विशेषकर जब रूसी हवाई अतिक्रमण की घटना बढ़े। यूएसएएफ और यूके ने पहले ही इस दिशा में वायुगतिकीय समर्थन को स्वचालित करने की योजना बनाई है।
रूस के विदेश मंत्रालय ने इस प्रकार की नाटो निगरानी को “असुरक्षित सीमा सीमाओं के निकट लागू किया गया” कहा, लेकिन कोई सीधा सैन्य प्रतिक्रिया नहीं दी। उन्होंने वार्ता के माध्यम से तनाव कम करने की अपील की।
ब्रिटिश विमानों ने प्रमुख रूप से RAF वड्डिंगटन (लीनकॉन्शायर) और RAF मिल्डेनहॉल (सफ़फ़र्ड) से टेक-ऑफ़ किया। ईंधन समर्थन के लिये KC‑135 को भी मिल्डेनहॉल से संचालन किया गया। सभी ऑपरेशनों का समन्वयन नाटो एयर कमांड, जो जर्मनी के रामस्टीन एयर बेस में स्थित है, द्वारा किया गया।
मुख्य उद्देश्य रूसी सिग्नल, ड्रोन और हवाई अतिक्रमण की रीयल‑टाइम जानकारी इकट्ठा करना, नाटो के सदस्य देशों को आश्वासन देना, और पुतिन को एक स्पष्ट राजनीतिक संदेश देना था कि नाटो की पूर्वी सीमा पर सतर्कता कम नहीं होगी।
इसे देख कर स्पष्ट हो जाता है कि नाटो का यह शो सिर्फ दिखावे के लिए है, वास्तविक सुरक्षा में योगदान नहीं देता। ब्रिटिश‑अमेरिकी टीमों को 12 घंटे हवा में रखकर पुतिन को डांटने का प्रयास बेकार है। यह ऑपरेशन लागत‑बेशुमार है और अधिकांश डेटा पहले से ही जमीनी जासूसी से मिलता है। अगर सच में डिटेक्शन चाहिए तो जमीन‑आधारित रडार लगवाना बेहतर रहेगा।
सच में, जब हम इस तरह की दीर्घ‑उड़ानों की बात करते हैं, तो यह समझना ज़रूरी है कि ELINT और समुद्री निगरानी कई लेयर जोड़ते हैं। ऐसी डेटा चेन से नाटो को जल्दी से तेज़ी से प्रतिक्रिया करने में मदद मिलती है, जो कि सीमा‑उल्लंघनों को रोक सकता है।
इसे देखकर दिल तो बस धड़के ही नहीं, बल्कि एकदम ड्रामा मोड में डाल दिया 😱! नाटो की ये छड़ी‑फूँक वाले ओपरेशन को देखकर लगता है जैसे कोई बड़े बच्चे के खेल में पंख लगा रहे हों।
वास्तव में, इस तरह के मिशन को चलाते समय अंतरराष्ट्रीय सहयोग की सीमा‑रेखाएँ साफ़ रखनी चाहिए। सब देश को एक ही ताल में काम करने की ज़रूरत है, warna ऐसा दिखावा सिर्फ उठापटक बन जाता है।
संदेश स्पष्ट है: नाटो अपने पूर्वी फ़्लैंक को दृढ़ता से देख रहा है, और यह मिशन उस प्रतिबद्धता को दर्शाता है।
देखिए, इस मिशन में न सिर्फ तकनीकी तत्व हैं, बल्कि एक बड़ा राजनैतिक बयान भी छुपा है। यह दिखाता है कि नाटो ने रूसी जासूसी के खिलाफ बाड़ें खड़ी कर दी हैं, और यह सार्वजनिक चेतावनी का काम करता है।
इस उड़ान को देखकर मन में प्रश्न उठता है कि सुरक्षा का भविष्य किस दिशा में जा रहा है।
जब दो राष्ट्र मिलकर ऐसी बड़ी दूरी तय करते हैं, तो यह अंतरराष्ट्रीय सहयोग की शक्ति का प्रमाण बनता है।
RC‑135W की इलेक्ट्रॉनिक इंटेलिजेंस क्षमता और P‑8A की समुद्री निगरानी मिलकर एक व्यापक दृश्य प्रदान करती है।
इस मिश्रण से नाटो को रशिया की सिग्नल और समुद्री गतिविधियों पर दोहरी नजर रखने में मदद मिलती है।
इसके अलावा, मध्य‑आकाश में ईंधन रीफ़्यूलिंग ने विमान को सतत ऑपरेशन करने की अनुमति दी, जिससे जमीन‑आधारित समर्थन की जरूरत घट गई।
ऐसा तकनीकी कदम न केवल लागत‑प्रभावी है, बल्कि रणनीतिक लचीलापन भी बढ़ाता है।
हालांकि, इस मिशन में शामिल देशों के बीच समन्वय की जटिलताएँ अनदेखी नहीं की जा सकतीं।
अलग‑अलग कमांड संरचनाओं और नियमों को एक ही ऑपरेटिंग फ्रेमवर्क में लाना आसान नहीं होता।
फिर भी, इस तरह की संयुक्त उड़ानों ने दिखाया है कि विभिन्न सैन्य संस्कृतियों को एक साथ लाना संभव है।
यह भविष्य में अधिक बार दोहराए जाने वाले सहयोगी मिशनों का रोडमैप बन सकता है।
रणनीतिक रूप से, इस प्रकार के डेटा संग्रह से रूसी आक्रमणों को पहले से पहचानना आसान हो जाता है।
यह न केवल तुरंत प्रतिक्रिया में मदद करता है, बल्कि दीर्घकालिक नीति निर्माण में भी आधार बनता है।
नागरिक स्तर पर, ऐसे ऑपरेशन से लोगों को सुरक्षा की भावना मिलती है, जिससे नाटो पर भरोसा बढ़ता है।
किन्तु हमें यह भी याद रखना चाहिए कि हर निगरानी कार्य में गोपनीयता और संप्रभुता के मुद्दे भी उठते हैं।
अंततः, यह मिशन नाटो की सतत सजगता और अंतरराष्ट्रीय एकता को दर्शाता है, और भविष्य की सुरक्षा रणनीति में एक नया मानक स्थापित करता है।
वाह, इतना लंबा डेटा ट्रैकिंग देखकर लगता है जैसे हमारी आँखों के सामने एक नई लहर उठी हो 🌊! यह वास्तव में नाटो की क्षमताओं को उजागर करता है।
सभी को दिखाने की कोशिश की गई है कि नाटो का बजट अनंत है, लेकिन वास्तविक प्रभाव कितना मायने रखता है, यह अभी अस्पष्ट है।
इस ऑपरेशन के पीछे छिपा हुआ बड़ा खेल दिखता है; शायद कोई गुप्त एजेंडा गुप्त रूप से डेटा संग्रह कर रहा है, जिसे सार्वजनिक नहीं किया जाता।
इसे देख कर लगता है कि हम फिर से वही गलती दोहरा रहे हैं।
देश की सुरक्षा की बात है, तो ऐसे मिशन जरूरी हैं 💪! कोई भी हमें कम नहीं आँकेगा।
अभी तो लगता है जैसे नाटो ने अपने ‘सुपरहीरो मोड’ को ऑन कर दिया हो, लेकिन असली बात यह है कि यह सब कितना असरदार है? थोड़ा ध्य्यन देना चाहिए।
बिल्कुल, ऐसी निगरानी से हम भविष्य में संभावित खतरों को पहले से पहचान सकते हैं, जिससे रोकथाम की संभावनाएं बढ़ेंगी।