हवाई निगरानी: भारत में एयरोस्पेस सुरक्षा के नए आयाम

जब हम हवाई निगरानी, हवा में होने वाली हर आंदोलन, वस्तु या बदलाव को रीयल‑टाइम में ट्रैक करने की तकनीक की बात करते हैं, तो दिमाग में तुरंत ड्रोन, बिना पायलट के उड़ने वाला छोटा एरियल प्लेटफ़ॉर्म, सैटेलाइट इमेजिंग, उपग्रह से ली गई उच्च रिज़ॉल्यूशन वाली तस्वीरें और डेटा और रेडार सिस्टम, इलेक्ट्रोमैग्नेटिक तरंगों से वस्तुओं की दूरी और गति मापने वाला उपकरण आते हैं। ये सब घटक मिलकर एक जाल बनाते हैं, जिससे रक्षा मंत्रालय, नागरिक प्रशासन और निजी कंपनियां हवा के अंदर क्या हो रहा है, इस पर स्पष्ट नजर रख सकती हैं। सरल शब्दों में कहें तो हवाई निगरानी वह आँख है जो आकाश को धरती से जोड़ती है।

हवाई निगरानी के मुख्य घटक और उनका उपयोग

पहला घटक ड्रोन है। ड्रोन को छोटे‑से‑बड़े सभी आकार में इस्तेमाल किया जाता है—किसानी के खेतों की निगरानी से लेकर सीमा सुरक्षा तक। ड्रोन से ली गई फोटो और वीडियो को GIS, भौगोलिक सूचना प्रणाली, जो मानचित्रों पर डेटा को लेयर‑वाइस दिखाती है में इंटीग्रेट किया जाता है, तो आप स्थानिक पैटर्न आसानी से समझ सकते हैं। दूसरा घटक सैटेलाइट इमेजिंग है। सैटेलाइट क्लाउड कवरेज, तूफ़ान की प्रगति या वायु प्रदूषण का स्तर राष्ट्रीय स्तर पर मॉニटर करने में मदद करता है। तीसरा, रेडार सिस्टम, हमेशा काम करने वाला है—बारिश, बर्फ या धुंध में भी इसे वस्तु की दूरी और गति पता चलती है, इसलिए हवाई अड्डे और समुद्री सीमा के पास यह अनिवार्य है। इन प्रणालियों के बीच का संबंध कुछ इस तरह है: हवाई निगरानी ड्रोन डेटा को रीयल‑टाइम में कैप्चर करती है, सैटेलाइट इमेजिंग से माक्रो‑लेवल दृश्य मिलता है, और रेडार से मौसम‑अधीन स्थितियों में भी लगातार सिग्नल प्राप्त होते हैं। यह त्रिकोणीय जुड़ाव सुरक्षा, आपदा प्रबंधन और पर्यावरण संरक्षण को एक साथ मजबूती देता है।

इन तकनीकों में AI का इंटेग्रेशन अब एक ज़रूरी कदम बन गया है। मशीन लर्निंग एल्गोरिदम ड्रोन या सैटेलाइट से आई बड़ी मात्रा में इमेजरी को जल्दी श्रेणीबद्ध कर सकते हैं—जैसे अनधिकृत हवाई जहाज़ों की पहचान या जलस्तर के अचानक उछाल की चेतावनी। इसके अलावा, डेटा प्राइवेसी और अंतरराष्ट्रीय नियम भी हवाई निगरानी के साथ जुड़े हैं। भारत ने 2023 में ड्रोन ऑपरेशन के लिए नई लाइसेंसिंग फ्रेमवर्क पेश किया, जिससे वैध उपयोग को प्रोत्साहन मिला और दुरुपयोग कम हुआ। भविष्य में 5G कनेक्टिविटी के साथ, रीयल‑टाइम डेटा ट्रांसमिशन की गति बढ़ेगी, जिससे तैयार प्रतिक्रिया समय घटेगा। अंत में, यह समझना जरूरी है कि हवाई निगरानी केवल रक्षा नहीं, बल्कि कृषि, परिवहन, शहरी योजना और पर्यावरण विज्ञान में भी एक प्रमुख भूमिका निभा रही है।

अब आप जानते हैं कि हवाई निगरानी, ड्रोन, सैटेलाइट इमेजिंग, रेडार और GIS कैसे आपस में तालमेल बनाते हैं और हमारे देश में किस तरह से कार्यरत हैं। नीचे दी गई लेखों में हम इन तकनीकों के विभिन्न पहलुओं—नयी नीतियां, केस स्टडी, तकनीकी चुनौतियां और सफलता की कहानियां—को विस्तार से देखेंगे, ताकि आप अपनी जरूरत या रुचि के हिसाब से सही दिशा चुन सकें।

नाटो की पूर्वी सीमा पर 12‑घंटे की ब्रिटिश‑अमेरिकी निगरानी उड़ान 12 अक्तूबर 2025
Avinash Kumar 14 टिप्पणि

नाटो की पूर्वी सीमा पर 12‑घंटे की ब्रिटिश‑अमेरिकी निगरानी उड़ान

9‑10 अक्टूबर 2025 को RAF और USAF ने नाटो की पूर्वी सीमा पर 12‑घंटे की 10 000 मील निगरानी उड़ान की, जिससे रूसी अतिक्रमण पर जवाब और सुरक्षा का भरोसा बढ़ा।

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