अगर आप भारत की मिठाइयों में रूचि रखते हैं तो तिरुपति लड्डू आपके नाम ही सुनते ही दिमाग में आ जाता है। यह सिर्फ एक मीठा नहीं, बल्कि आध्यात्मिक महत्व भी रखता है। कई लोग इसे त्यौहारों या पूजा‑पाठ के दौरान ही नहीं, रोज़मर्रा की चाय के साथ भी लेते हैं। इस लेख में हम तिरुपति लड्डू का इतिहास, इसका धार्मिक पहलू और घर पर आसानी से बनाने की विधि को विस्तार से बताएँगे।
तिरुपती बालाजी मंदिर के द्वार पर ही इस लड्डू का जन्म माना जाता है। legend के अनुसार, भगवान वैष्णव ने पहली बार इसे यहाँ प्रसाद के रूप में दिया था। समय‑समय पर विभिन्न राजघरानों और स्थानीय लोगों ने इसे अपनी खास रेसिपी में बदलते हुए आज की शुद्ध रूप दे दी। तेलंगाना राज्य में यह लड्डू विशेष महत्व रखता है, इसलिए इसे ‘तिरुपति लड्डू’ कहा जाता है, जबकि कुछ लोग इसे ‘तिरुपती लड्डू’ भी लिखते‑पढ़ते हैं।
धार्मिक मान्यताओं के अनुसार इस लड्डू को खाने से मन की शांति मिलती है और किसी भी काम में सफलता आती है। इसलिए कई बार यह उपहार स्वरूप भी दिया जाता है, खासकर शादी या नए घर में बसने वाले लोगों को।
सबसे बड़ा फायदा यह है कि आप इस पवित्र मिठाई को अपने हाथों से बना सकते हैं, बिना किसी जटिल उपकरण के। नीचे एक सरल रेसिपी दी गई है जो 20‑25 लड्डू बनाती है।
तैयार लड्डू को airtight कंटेनर में रखें, दो‑तीन दिन तक फ्रेस रहेंगे। इन्हें आप पार्टी में या पूजा के समय आसानी से सर्व कर सकते हैं।
एक बात और याद रखें – तिरुपति लड्डू बनाते समय घी की मात्रा कम न करें, क्योंकि यही इसकी खास texture देता है. अगर आप लो‑फैट विकल्प चाहते हैं तो थोड़ा तेल इस्तेमाल कर सकते हैं, पर स्वाद में थोड़ी कमी महसूस होगी.
अब जब आपको इतिहास और रेसिपी दोनों पता चल गई है, तो अगली बार किसी त्यौहार या विशेष अवसर पर इस पवित्र मिठाई को बना कर देखिए. आप देखेंगे कि यह न सिर्फ आपके मेहमानों को खुश करेगा बल्कि आपके दिल में भी शांति लाएगा.
तेलुगु देशम पार्टी ने दावा किया है कि तिरुपति लड्डू के प्रसाद में गोमांस और अन्य जानवरों की चर्बी पाई गई है। यह दावा एक लैब रिपोर्ट के आधार पर किया गया है जिससे धार्मिक नेताओं और भक्तों में नाराजगी फैल गई है। वाईएसआरसीपी ने इन आरोपों का खंडन किया है।
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