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दिस॰,2025
रात के एक बजे, जब पूरा उत्तराखंड सो रहा था, तभी एक अनुकृत भूकंप ने रुद्रप्रयाग के तहत राज्य भर में तूफान खड़ा कर दिया। एक नकली भूकंप जिसकी तीव्रता 6.7 आयाम थी, उसके अभ्यास में कोटेश्वर जिला अस्पताल ढह गया, सुमेरपुर रेलवे टनल में 40-50 कामगार फंस गए, और सड़कें भूस्खलन से बंद हो गईं। यह सिर्फ एक अभ्यास नहीं था — यह एक चेतावनी थी, जो उत्तराखंड के भूगर्भ में छिपे खतरे को दर्शाती थी। और वह खतरा अभी भी जीवित है।
अभ्यास के दिन ही, दोपहर 4:45 बजे, एक वास्तविक भूकंप ने चमोली जिले के नीचे धमाका किया — 4.7 आयाम का, 33 किमी गहराई पर। यह तीसरा भूकंप था जो सिर्फ एक हफ्ते में उत्तराखंड को हिला दिया। पिछले दिन, 6 दिसंबर को, रुद्रप्रयाग के नीचे 5.5 आयाम का भूकंप आया था, जिसे दिल्ली-एनसीआर तक महसूस किया गया। और उससे एक दिन पहले, 5 दिसंबर को, 3.3 आयाम का एक और झटका आया।
इनके बीच, 7 दिसंबर को ही एक और 4.2 आयाम का भूकंप रिकॉर्ड किया गया, और 9 दिसंबर को एक और 4.2 आयाम का झटका हल्दवानी से 168 किमी उत्तर-पूर्व में आया। नवंबर के अंत में, अल्मोड़ा के पास 3.7 आयाम का भूकंप आया था। ये सिर्फ आंकड़े नहीं हैं — ये एक पैटर्न हैं।
रुद्रप्रयाग के जिला प्रशासन ने इस अभ्यास को 'रिएक्टर लेवल' पर तैयार किया — यानी ऐसा जैसे भूकंप असली हो गया हो। नेशनल डिजास्टर रिस्पॉन्स फोर्स (NDRF), स्टेट डिजास्टर रिस्पॉन्स फोर्स (SDRF), पुलिस, स्वास्थ्य दल और स्थानीय प्रशासन ने एक साथ काम किया। कोटेश्वर अस्पताल के ढहे हुए हिस्सों में से लोगों को बाहर निकालने के लिए रोबोटिक डिटेक्शन टूल्स इस्तेमाल किए गए। सुमेरपुर टनल में फंसे लोगों के लिए ऑक्सीजन और खाने की आपूर्ति की जा रही थी — जैसे असली में होता है।
डिस्ट्रिक्ट एमरजेंसी ऑपरेशन्स सेंटर ने सभी एक्शन्स को रियल-टाइम मॉनिटर किया। एक टीम ने अगस्तमुनि मार्केट में नुकसान का आकलन किया, जहां दुकानें ढह गईं और बच्चे घायल हुए। ये सब तब हुआ जब बाहर एक असली भूकंप ने चमोली को हिला दिया था।
इन सब घटनाओं से पहले, नवंबर 2025 में हिमालय में आपदा सहनशील बुनियादी ढांचे पर एक राष्ट्रीय वर्कशॉप हुआ था। वहां के वैज्ञानिकों ने स्पष्ट कहा — उत्तराखंड, जो केंद्रीय भूकंपीय रिक्ति में स्थित है, एक विनाशकारी भूकंप के लिए तैयार है।
अंतिम बड़ा भूकंप यहां 600 साल पहले आया था। उसके बाद से, भूगर्भ में दबा हुआ ऊर्जा इकट्ठा हो रही है। वैज्ञानिकों ने कहा — इस रिक्ति में 7.5 से 8.0 आयाम तक का भूकंप आ सकता है। और जब वह आएगा, तो न सिर्फ घर, बल्कि सड़कें, पुल, बिजली के तार और अस्पताल भी नष्ट हो जाएंगे।
पिछले 10 सालों में, उत्तराखंड के 300 किमी के आसपास 194 भूकंप 4 आयाम या उससे अधिक के आए हैं। यानी लगभग हर 19 दिन में एक भूकंप। ये कोई साधारण आंकड़ा नहीं है — ये एक नियमित तालिका है जो बताती है कि भूगर्भ अशांत है।
1905 में, देहरादून से 274 किमी उत्तर-उत्तर-पश्चिम में 7.9 आयाम का भूकंप आया था — यह अभी तक का सबसे भयानक भूकंप रहा है। उसके बाद से, यहां के लोगों ने भूकंप के बारे में भूलने की कोशिश की। लेकिन भूगर्भ नहीं भूलता।
अभ्यास के बाद, राज्य सरकार ने कहा कि वे हिमालयी क्षेत्रों के लिए नए निर्माण मानक बनाएंगे। अब नए घरों को ढलान पर बनाने के लिए खास तकनीकों की जरूरत होगी। बुनियादी ढांचे — अस्पताल, स्कूल, सड़कें — को भूकंप-सहनशील बनाने का निर्देश दिया गया है।
लेकिन यहां की एक बड़ी समस्या है — अधिकांश निर्माण अवैध हैं। घरों को बिना नियमों के बनाया जा रहा है। अगर अगला भूकंप आ गया, तो ये घर नहीं, लोग ढह जाएंगे।
12 दिसंबर, 2025 तक, कोई बड़ा भूकंप नहीं आया। लेकिन यह शांति का संकेत नहीं है — यह बादलों के बीच की चुप्पी है। वैज्ञानिक अब भूकंपीय गतिविधि को 24x7 मॉनिटर कर रहे हैं। राज्य सरकार ने गांवों में भूकंप अभ्यास के लिए टीमें तैनात की हैं। बच्चों को स्कूलों में भूकंप के दौरान क्या करना है, उसकी शिक्षा दी जा रही है।
लेकिन सबसे बड़ी चुनौती है — लोगों को डर से नहीं, तैयारी से समझाना है। अगर हम इस भूकंप को अभ्यास के रूप में देखेंगे, तो अगला भूकंप हमारे लिए आपदा नहीं, बल्कि जीवन बचाने का अवसर बन सकता है।
उत्तराखंड हिमालय के तहत इंडियन प्लेट और यूरेशियन प्लेट के टकराव के कारण भूकंपीय क्षेत्र में स्थित है। इस क्षेत्र को 'केंद्रीय भूकंपीय रिक्ति' कहा जाता है, जहां लगभग 600 साल पहले एक विनाशकारी भूकंप आया था। इस अवधि के बाद भूगर्भ में ऊर्जा इकट्ठी हो रही है, जिसका असर छोटे-छोटे भूकंपों के रूप में दिख रहा है।
राज्य भर के अभ्यास में राष्ट्रीय आपदा प्रतिक्रिया बल (NDRF), राज्य आपदा प्रतिक्रिया बल (SDRF), पुलिस, स्थानीय प्रशासन और स्वास्थ्य विभाग शामिल थे। इन संगठनों ने एक साथ अस्पतालों, टनलों और बाढ़ग्रस्त क्षेत्रों में बचाव अभियान चलाए। इनकी समन्वय व्यवस्था डिस्ट्रिक्ट एमरजेंसी ऑपरेशन्स सेंटर ने नियंत्रित की।
वैज्ञानिकों के अनुसार, अगला बड़ा भूकंप किसी भी समय आ सकता है — यह भविष्यवाणी नहीं की जा सकती। लेकिन इतिहास के आधार पर, जब तक 600 साल की अवधि पूरी नहीं हो जाती, तब तक खतरा बना रहता है। अभी तक के आंकड़े दर्शाते हैं कि एक बड़ा भूकंप आने में कम से कम 50-100 साल बाकी हैं।
घरों को भूकंप-सहनशील बनाना, बच्चों को भूकंप अभ्यास से रूबरू कराना, और आपातकालीन बैग (जल, दवाएं, फ्लैशलाइट, रेडियो) तैयार रखना जरूरी है। अगर भूकंप आए, तो खिड़कियों के पास न रुकें, दरवाजों के नीचे छिपें, और अस्पताल या स्कूल के निर्माण मानकों को जांचें। बेहतर निर्माण ही जान बचाता है।
हां। रुद्रप्रयाग केंद्रीय भूकंपीय रिक्ति के दक्षिणी छोर पर स्थित है, जहां भूगर्भीय तनाव अधिक है। इस क्षेत्र में 2025 में ही दो बड़े भूकंप आए — 5.5 आयाम और 6.7 आयाम के अभ्यास के लिए अनुमानित केंद्र। यहां के ढलानों पर बने घर और सड़कें विनाश के लिए तैयार हैं।
सड़कों के भूस्खलन, बिजली और संचार व्यवस्था का नष्ट होना, और अस्पतालों का नुकसान बचाव कार्य को बाधित करता है। अक्सर गांवों तक पहुंचने में देरी होती है। इसलिए अभ्यास में ड्रोन और हेलीकॉप्टर का उपयोग अहम रहा — ये वहीं जाते हैं जहां इंसान नहीं पहुंच सकते।
अरे यार ये सब अभ्यास है ना तो फिर इतना डर क्यों? असली भूकंप तो आएगा तभी पता चलेगा कि क्या होता है। अभी तो सिर्फ राज्य सरकार का धमाकेबाजी वाला प्रचार है।