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नव॰,2025
बिहार के राजनीतिक नक्शे पर एक बार फिर भूकंप आ गया। राष्ट्रीय लोकतांत्रिक गठबंधन (एनडीए) ने बिहार विधानसभा चुनाव 2025बिहार में 243 में से 202 सीटें जीतकर ऐतिहासिक जीत दर्ज की। चुनाव आयोग के अंतिम आंकड़ों के अनुसार, भारतीय जनता पार्टी (बीजेपी) ने 89 सीटें, जनता दल (यूनाइटेड) ने 85, लोक जनशक्ति पार्टी (राम विलास) ने 19, कांग्रेस 6, अखिल भारतीय मजलिस-ए-इत्तेहादुल मुस्लिमीन 5 और हमरो आम आदमी पार्टी 5 सीटें जीतीं। जबकि महागठबंधन को सिर्फ 36 सीटें मिलीं—राजद 25, कांग्रेस 6 और बाकी बाएं दलों को 5।
इस जीत के साथ नीतीश कुमार बिहार के पहले ऐसे मुख्यमंत्री बन गए हैं, जिन्होंने दस बार इस पद का दायित्व संभाला है। यह उनका छठा लगातार कार्यकाल है—एक ऐसा रिकॉर्ड जिसकी तुलना पूरे देश में किसी और राज्य के मुख्यमंत्री से नहीं की जा सकती। यह जीत खास तौर पर अनोखी है क्योंकि अगस्त 2022 में उन्होंने बीजेपी के साथ गठबंधन तोड़ा था, राजद और कांग्रेस के साथ महागठबंधन में शामिल हुए थे, और अब फिर से बीजेपी के साथ वापस आ गए। जैसा कि एक वरिष्ठ राजनीतिक विश्लेषक ने कहा, “नीतीश कुमार ने अपनी राजनीति को अपने राज्य के हित में बदल दिया। उनकी लचीलापन ने उन्हें जीतने का रास्ता खोल दिया।”
गिनती शुरू होते ही एनडीए की जीत का रास्ता साफ दिख गया। एनडीटीवी की लाइव कवरेज में कहा गया कि “गिनती के शुरू होने के दो घंटे में ही यह साफ हो गया कि यह एक नॉन-कॉन्टेस्ट जीत है।” बीजेपी के दिल्ली स्थित कार्यालय पर नरेंद्र मोदी ने जीत की घोषणा करते हुए कहा, “बिहार ने एक बार फिर विकास और स्थिरता का विकल्प चुना है।” चुनाव के दौरान 66.91% वोटिंग दर दर्ज की गई—यह बिहार के इतिहास में सबसे ऊंची वोटिंग दर है, जो लोगों की राजनीति में जुड़ने की इच्छा को दर्शाती है।
भारतीय जनता पार्टी ने अपना सबसे अधिक सीटों का रिकॉर्ड बनाया है। टाइम्स ऑफ इंडिया ने इसे “बिहार की राजनीति में एक समय का बाहरी” बताया था, लेकिन अब यह राज्य का सबसे प्रभावशाली दल बन गया है। यह बदलाव सिर्फ एक चुनाव का नतीजा नहीं, बल्कि एक गहरी राजनीतिक रीअलाइंस का परिणाम है। बीजेपी ने गांव-गांव तक पहुंचकर विकास के संदेश को लोकप्रिय बनाया, जिसके साथ नीतीश कुमार की गठबंधन की लचीलापन ने जुड़ाव बनाया।
राष्ट्रीय जनता दल (राजद) ने 143 सीटों में से सिर्फ 25 जीतीं—यह उनका 2010 के बाद से सबसे खराब प्रदर्शन है। इससे पहले राजद कभी तीसरे स्थान पर नहीं रहा था। तेजश्वी यादव ने राघोपुर से जीत दर्ज की, लेकिन उनकी टीम का समग्र प्रदर्शन निराशाजनक रहा। उन्होंने अपने विजय भाषण में कहा, “हमने अपना स्थान हासिल किया...” लेकिन यह भाषण अधूरा रह गया। विश्लेषकों का कहना है कि राजद ने अपने वोटर बेस को भूल गया और लोगों को लगा कि वे बस बीजेपी के खिलाफ बने हुए हैं—कोई विकल्प नहीं।
जनता दल (यूनाइटेड) ने 85 सीटें जीतकर अपना 2010 के बाद का सर्वश्रेष्ठ प्रदर्शन किया। अनंत कुमार सिंह, जिन्हें स्थानीय रूप से ‘बहुबली’ कहा जाता है, मोकामा से जीते। इसके अलावा महेश्वर हजारी (कल्याणपुर), राम चंद्र सादा (अलौली), हरि नारायण सिंह (हरनौत), मनोरमा देवी (बेलागांज) और अरुण मंजी (मसौरही) जैसे नाम भी जीते। यह जीत दर्शाती है कि जनता दल (यूनाइटेड) के पास अभी भी एक मजबूत राजनीतिक आधार है—खासकर उत्तर बिहार में।
बाएं दलों ने अपनी जीत के लिए सिर्फ 5 सीटें जीतीं। उन्होंने इस हार को “मुख्य राजनीतिक वास्तविकताओं का परिणाम” बताया। उनका कहना है कि लोग अब अपने जीवन में बदलाव चाहते हैं, न कि राजनीतिक एलायंस के खेल में।
अगले कुछ दिनों में नीतीश कुमार का दसवां कार्यकाल शुरू होगा। उनकी सरकार का सामना चुनौतियों से होगा—बेरोजगारी, शिक्षा और स्वास्थ्य सुधार, और बीजेपी के साथ साझा सत्ता के तनाव। लेकिन एक बात स्पष्ट है: लोगों ने एक बार फिर स्थिरता को चुना है।
नीतीश कुमार ने 2005 से लगातार चार बार और 2015, 2020 और 2025 में फिर से मुख्यमंत्री बनकर दसवां कार्यकाल पूरा किया। उन्होंने 2022 में बीजेपी से अलग होकर महागठबंधन में शामिल हुए, लेकिन चुनाव से पहले फिर से बीजेपी के साथ गठबंधन किया। इस लचीलापन ने उन्हें वोटर्स के बीच विश्वास बनाए रखने में मदद की।
बीजेपी ने विकास के संदेश, सुरक्षा और सामाजिक समावेशन के मुद्दों पर जोर दिया। गांवों में नए रास्ते, बिजली और स्वच्छता के कार्यक्रमों के साथ उन्होंने ग्रामीण वोटर्स को जोड़ा। इसके अलावा नीतीश कुमार के साथ गठबंधन ने उन्हें एक विश्वसनीय साझेदार के रूप में प्रस्तुत किया।
राजद ने अपने वोटर बेस को नहीं जागृत किया। उनका चुनावी संदेश बहुत आलोचनात्मक था—बीजेपी के खिलाफ लड़ाई के बारे में, लेकिन अपनी योजनाओं के बारे में कम। उनकी टीम में अंतर्वैयक्तिक तनाव और नेतृत्व की कमी भी बड़ी समस्या बनी।
यह बिहार के इतिहास में सबसे ऊंची वोटिंग दर है, जो लोगों के बीच राजनीति के प्रति जागरूकता और भागीदारी को दर्शाती है। यह उस तथ्य को भी दर्शाता है कि लोग अब अपने भविष्य के लिए वोट कर रहे हैं, न कि केवल व्यक्तिगत नेताओं के लिए।
उनके सामने बेरोजगारी, शिक्षा की गुणवत्ता, स्वास्थ्य सुविधाओं में सुधार और बीजेपी के साथ साझा सत्ता के तनाव जैसी चुनौतियां हैं। विशेष रूप से, बीजेपी के दबाव में उन्हें अपने आधार को बनाए रखना होगा, जबकि उनकी सरकार के कार्यक्रमों को आगे बढ़ाना होगा।
बिहार में ये जीत कोई आम चुनाव नहीं थी यार ये तो एक राजनीतिक इंजीनियरिंग का नमूना है नीतीश कुमार ने जो किया वो एक दिन में नहीं हुआ दस साल का खेल था जिसमें उन्होंने अपने दल को बार बार बदलकर भी अपनी पावर बरकरार रखी और बीजेपी ने भी समझ लिया कि बिहार में बिना नीतीश के कोई भी सरकार चलाना असंभव है
ये सब बकवास है जो बीजेपी ने किया वो देश के लिए नहीं बिहार के लिए किया ये सब चुनावी झूठ है जिसमें गांवों में सड़क बनवाकर वोट मांगे जा रहे हैं और लोग इसे विकास कह रहे हैं अगर विकास होता तो बेरोजगारी कम होती ना ये सब नाटक है
वोटिंग दर 66.91% बहुत अच्छी है बिहार के लोगों ने सही फैसला किया
इस चुनाव को सिर्फ जीत या हार के रूप में नहीं देखना चाहिए ये तो एक सामाजिक बदलाव का संकेत है जहां लोग अब अपने भविष्य के लिए वोट कर रहे हैं न कि किसी नेता के नाम के लिए नीतीश कुमार की लचीलापन की बात हो रही है लेकिन क्या ये लचीलापन नहीं बल्कि एक अस्तित्व की लड़ाई है जिसमें वो अपनी पहचान बचाना चाहते हैं
बिहार की राजनीति में नीतीश कुमार का स्थान अद्वितीय है उन्होंने अपने दल को बचाने के लिए जो फैसले लिए वो कठिन थे लेकिन उन्होंने राज्य के हित में काम किया अब बीजेपी के साथ गठबंधन में उन्हें शिक्षा और स्वास्थ्य पर जोर देने का मौका मिलेगा जो बहुत जरूरी है
राजद की हार का कारण सिर्फ नेतृत्व की कमी नहीं बल्कि उनकी रणनीति का असफलता है उन्होंने अपने वोटर्स को भूल दिया और बीजेपी के खिलाफ बातें करने लगे जबकि लोग विकास चाहते थे जनता दल (यूनाइटेड) की वापसी भी दिलचस्प है उत्तर बिहार में उनका असर अभी भी जमीन पर है
ये सब बहुत अच्छा लग रहा है लेकिन मैंने सुना है कि बीजेपी के लोग गांवों में भोजन बांटकर वोट ले रहे हैं और राजद के लोगों को बर्बाद कर दिया गया ये तो बहुत बुरा है लोगों को बेवकूफ बनाया जा रहा है
चुनाव के नतीजे देखकर लगता है कि बिहार के लोगों ने एक अलग तरह का राजनीतिक जागरूकता दिखाया है वो अब केवल नेता के नाम पर नहीं बल्कि उनकी रणनीति और विकास के प्रतिबद्धता पर वोट कर रहे हैं नीतीश कुमार की लचीलापन को लेकर तो बहुत बात हो रही है लेकिन क्या ये लचीलापन नहीं बल्कि एक राजनीतिक अस्तित्व की लड़ाई है जिसमें उन्होंने अपने दल को बचाने के लिए अपनी विचारधारा को बदल दिया और अब जब बीजेपी के साथ गठबंधन हो गया है तो उन्हें अपने आधार को बनाए रखना होगा जबकि बीजेपी के दबाव में उनके सामने शिक्षा स्वास्थ्य और बेरोजगारी जैसी बड़ी चुनौतियां हैं जिन्हें वे निपटाने के लिए वास्तविक नीतियां बनाने की जरूरत है और ये नीतियां बिहार के गरीब और अनुसूचित जाति और जनजाति के लोगों के लिए होनी चाहिए न कि केवल शहरी वर्ग के लिए
मुझे बहुत दुख हो रहा है राजद के लिए वो तो मेरे परिवार के लोग हैं और अब उनकी हार देखकर मैं रो रही हूं ये बस एक चुनाव नहीं बल्कि मेरे दिल का टुकड़ा है
ये सब बकवास है बीजेपी ने जीता तो क्या हुआ ये तो हमेशा से ऐसा ही होता है