14
जन॰,2025
हाल ही में एक पोडकास्ट वार्ता के दौरान मेटा के सीईओ मार्क जुकरबर्ग ने कहा था कि भारतीय सरकार, कोविड-19 महामारी के कारण 2024 के लोकसभा चुनावों में हार गई थी। इस बयान से भारतीय राजनीतिक क्षेत्र में विवाद खड़ा हो गया है, क्योंकि यह तथ्य बिल्कुल गलत है। जुकरबर्ग ने यह भी कहा कि महामारी के बाद की आर्थिक स्थितियों ने सरकारों के प्रदर्शन पर प्रभाव डाला, जिससे दुनिया में कई सरकारें सत्ता से बाहर हो गईं। उन्होंने इसे एक वैश्विक प्रवृत्ति के रूप में वर्णित किया, जिसमें भारतीय परिप्रेक्ष्य को शामिल किया गया।
इस विवाद के बीच, भाजपा के सांसद निशिकांत दुबे ने जो संसदीय संचार और सूचना प्रौद्योगिकी समिति के प्रमुख हैं, घोषणा की है कि समिति मेटा को समन कर सकती है। उन्होंने आरोप लगाया कि जुकरबर्ग की यह टिप्पणी गलत सूचना के प्रसार का एक उदाहरण है, जो किसी भी लोकतांत्रिक देश की छवि को धूमिल कर सकती है। दुबे ने मेटा से भारतीय संसद और जनता से इस गलती के लिए माफी मांगने की मांग की है।
इस बीच, केंद्रीय मंत्री अश्विनी वैष्णव ने जुकरबर्ग के दावे को खारिज करते हुए कहा कि 2024 के चुनावों में नरेंद्र मोदी द्वारा नेतृत्व वाली एनडीए सरकार ने अपना शासन जारी रखा था। मोदी सरकार के अच्छे शासन और जनता के विश्वास को उन्होंने जीता। मंत्री ने मुफ्त भोजन, 2.2 अरब मुफ्त वैक्सीन और कोविड-19 के दौरान दुनिया भर में दी गई सहायता जैसी पहलुओं का हवाला दिया।
इस विवाद के साथ ही, मेटा ने हाल ही में तीसरे पक्ष के तथ्य-जाँच को समाप्त करने और संवेदनशील विषयों पर मॉडरेशन की प्रक्रिया को आसान बनाने के अपने फैसले के कारण भी आलोचना का सामना किया है। यह निर्णय गलत सूचना विशेषज्ञों और राजनीतिक व्यक्तियों की ओर से आलोचना का पात्र बन रहा है, क्योंकि यह प्लेटफ़ॉर्म की विश्वसनीयता को प्रभावित कर सकता है।
वर्तमान में 14 जनवरी, 2025 की तिथि तक मेटा को कोई औपचारिक पत्र नहीं भेजा गया है, लेकिन यह उम्मीद की जा रही है कि संसदीय समिति का समन जल्द ही जारी किया जाएगा। यह पूरा प्रकरण एक महत्वपूर्ण प्रकरण बन गया है, जो सोशल मीडिया प्लेटफार्मों की भूमिका और उनकी जिम्मेदारी पर प्रश्न उठा रहा है। जब बात इतनी बड़ी और संवेदनशील हो, तो दुनिया की सबसे बड़ी लोकतंत्रिक स्थितियों के बारे में सही जानकारी का प्रसार आवश्यक है। विश्लेषकों के अनुसार, यह विवाद उन महत्वपूर्ण मुद्दों को उजागर करता है जिन पर दर्शकों के लिए खबरें पहुंचाने के लिए मीडिया प्लेटफार्मों की जवाबदेही बनती है।
ये तो बस एक बात है कि जब तक बड़े कंपनियाँ अपनी बात चलाती हैं, हम लोग बस उनके बारे में बात करते रहते हैं... असली समस्या तो ये है कि हम खुद को इतना अहम नहीं समझते!
मार्क जुकरबर्ग को ये समझना चाहिए कि भारत का चुनाव कोई रियलिटी शो नहीं है। लोगों की जिंदगी लगी हुई है इसमें।
ये सब बस एक विश्व स्तरीय नाटक है... एक अमेरिकी CEO जो भारत के चुनाव के बारे में टिप्पणी करता है, जबकि उसकी कंपनी यहाँ के डेटा को लूट रही है। अब ये नीतियाँ बदलने की बात कर रहा है? बस एक शो है।
ये सब धोखा है। मेटा को बस एक नियम बनाना है जिससे वो अपना बिज़नेस बचा सके।
इस तरह की टिप्पणियों का असली खतरा ये है कि वो अनजाने में लोगों को ये लगाने लगती है कि लोकतंत्र की जीत या हार कोई बाहरी शक्ति के हाथ में है, जबकि वास्तव में ये तो हमारी अपनी जिम्मेदारी है कि हम किसको वोट दे रहे हैं और क्यों।
अगर आप दुनिया के सबसे बड़े लोकतंत्र के बारे में बात कर रहे हैं, तो कम से कम थोड़ा इतिहास तो पढ़ लीजिए। हमारे यहाँ कोविड के दौरान 2.2 अरब वैक्सीन दी गईं, और आज भी हमारी सरकार ने अपने लोगों को खाना, बिजली, पानी दिया। ये कोई बाहरी शक्ति का फैसला नहीं है, ये तो भारतीय लोगों की जीत है।
मेटा के पीछे अमेरिकी सरकार है और ये सब एक नया तरीका है भारत को नियंत्रित करने का... जुकरबर्ग बस एक छलावा है। चुनाव के बाद भी जो जीता वो वही है जिसके पास सबसे ज्यादा डेटा है। ये सब एक बड़ा गेम है
क्या हम वाकई इतने बेचैन हैं कि एक विदेशी CEO की एक गलत टिप्पणी पर इतना जोर दे रहे हैं? शायद हमें खुद को बेहतर समझना चाहिए... अगर हमारा लोकतंत्र इतना मजबूत है, तो एक टिप्पणी क्या बदल सकती है? बेहतर है कि हम अपनी जिम्मेदारी निभाएँ और ज्ञान को फैलाएँ।
ये सब तो बस एक बड़ा नाटक है... जब तक हम अपने डेटा को बेचते रहेंगे, तब तक वो हमें बताएंगे कि हमारी जीत कैसे हुई 😒
इस विवाद के अंदर एक गहरा सामाजिक-तकनीकी विषय छिपा हुआ है: डिजिटल डेमोक्रेसी का डिक्टेटरशिप। मेटा जैसे प्लेटफॉर्म्स ने एक नए तरह के नॉलेज एक्सचेंज की स्थापना की है, जहाँ ट्रुथ का निर्धारण अब एल्गोरिदम द्वारा होता है, न कि सामाजिक समझ द्वारा। इसलिए जब एक एक्सटर्नल एजेंट जैसे जुकरबर्ग अपने निष्कर्ष जारी करता है, तो यह एक डिजिटल इम्पीरियलिज्म का उदाहरण है। हमें अपने डेटा एथिक्स और सामाजिक एल्गोरिदम को नियंत्रित करने की आवश्यकता है।