27
जुल॰,2024
रायन, 2024 में आई एक तमिल भाषा की एक्शन थ्रिलर फिल्म है जिसे बहु-प्रतिभाशाली अभिनेता धनुष ने न केवल निर्देशित किया है, बल्कि इसमें मुख्य भूमिका भी निभाई है। यह फिल्म अपने शानदार एक्शन सीक्वेंसेज और बेहतरीन सिनेमाटोग्राफी के लिए तारीफें बटोर रही है। फिल्म में धनुष के साथ-साथ एस. जे. सूर्या, प्रकाश राज, सेल्वाराघवन, सुंदीप किशन, कालिदास जयराम, दुशारा विजयन्, अपर्णा बालमुरली, वरालक्ष्मी सरथकुमार, और सरवनन जैसी अनुभवी और उभरती हुईं सितारे भी शामिल हैं।
फिल्म की कहानी एक जटिल और धमाकेदार एक्शन थ्रिलर पर आधारित है, जिसमें मुख्य किरदार
फिल्म बेकार। एक्शन भी नहीं, कहानी भी नहीं।
इस फिल्म में धनुष ने सिर्फ एक्शन नहीं, बल्कि एक भावनात्मक यात्रा का भी चित्रण किया है। जब वो अपने बेटे के लिए लड़ रहा होता है, तो आँखें भर आती हैं। सिनेमाटोग्राफी? ओह भाई, ये तो एक कविता है जो चल रही है। 🎥✨
ये फिल्म तो बस एक बम है। धनुष का डायलॉग और कैमरा मूवमेंट देखकर लगता है जैसे कोई एक्शन वीडियोगेम जिंदा हो गया हो। बस बैठ जाओ, ब्रेक न लेना।
तमिल सिनेमा अभी भी बॉलीवुड से कहीं आगे है। ये फिल्म देखकर लगता है कि हमारे दक्षिणी भाईयों ने फिल्म निर्माण का नया नियम बना दिया है।
क्या किरदारों की गहराई के बारे में कुछ बताया गया है? मुझे लगता है कि फिल्म का असली जादू उन छोटे-छोटे पलों में छिपा है जहाँ बातचीत नहीं, आँखों की भाषा बोल रही होती है।
अरे भाई, ये फिल्म तो पहले से ही बहुत ज्यादा बढ़िया बताई जा रही है। लेकिन सच बताऊँ तो एक्शन सीक्वेंस तो देखने लायक हैं, लेकिन कहानी? ये तो एक नाटक है जिसे बिना स्क्रिप्ट के बनाया गया है। और धनुष का निर्देशन? अच्छा है लेकिन बहुत अधिक अपने आप को दिखाने की कोशिश। आखिरी 20 मिनट में सब कुछ बर्बाद हो गया।
फिल्म के सिनेमाटोग्राफी के संदर्भ में, लाइटिंग डिजाइन ने न केवल भावनाओं को एक्सप्रेस किया, बल्कि वातावरण की गहराई को भी दर्शाया। शूटिंग लोकेशन्स का चयन भी एक अत्यंत जानकारीपूर्ण चयन था, जिसने नैरेटिव के साथ एक अनुभवजन्य सामंजस्य बनाया। डायलॉग ड्राफ्टिंग में भी एक सूक्ष्म नियंत्रण दिखाई दिया, जिसने चरित्रों के आंतरिक संघर्ष को बाहरी व्यवहार के माध्यम से व्यक्त किया।
ये फिल्म देखकर मैंने सोचा कि जिंदगी में कभी कोई भी अकेला नहीं लड़ता। धनुष ने बस एक फिल्म नहीं बनाई, बल्कि एक आवाज़ उठाई है। 💪❤️
बहुत बढ़िया फिल्म है... बस एक बात... थोड़ा ज्यादा एक्शन हो गया था... और बैकग्राउंड म्यूजिक... ओह भाई... वो तो दिल तक पहुँच गया... 😍🎶
फिल्म के अंत में जब धनुष खड़ा होता है और बिना कुछ कहे बस देखता है... तो लगता है ये एक जीवन का सबक है। क्या हम सब भी इतने शांत हो सकते हैं जब सब कुछ टूट जाए?
अरे यार ये फिल्म तो दिल को छू गई 😭 धनुष ने जो भी किया वो बस एक आदमी का दर्द था... और ये बस एक फिल्म नहीं... ये तो एक आत्मा का साक्षात्कार है 🙏🔥
यह फिल्म, एक आधुनिक सांस्कृतिक घटना के रूप में, भारतीय सिनेमा के इतिहास में एक महत्वपूर्ण मोड़ को दर्शाती है, जिसमें व्यक्तिगत विनाश और आत्म-पुनर्निर्माण के द्वंद्व का गहन विश्लेषण किया गया है। यह निर्माण एक अनुभव है, जिसे केवल एक अत्यंत संवेदनशील दर्शक ही समझ सकता है।
सब ये कह रहे हैं कि ये फिल्म बेहतरीन है। लेकिन क्या किसी ने ध्यान दिया कि दुशारा विजयन का किरदार बिल्कुल बेकार था? उसकी कोई भी डायलॉग नहीं थी जो नैरेटिव को आगे बढ़ाती। ये फिल्म बस धनुष का एक अहंकार था।
तुम सब ये क्या बकवास कर रहे हो? ये फिल्म तो बिल्कुल फेल हुई। धनुष ने अपनी फिल्म में खुद को बहुत ज्यादा दिखाया। बस अपनी ताकत दिखाने के लिए बनाई है। अगर तुम इसे अच्छी मानते हो तो तुम भी वैसे ही हो जो अपने आप को बड़ा समझते हो।