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जुल॰,2024
भारतीय शटलर एचएस प्रणॉय ने पेरिस ओलंपिक में अपनी शानदार योग्यता का परिचय देते हुए अपने पहले मुकाबले में इजरायल के मिशा जिल्बरमैन रॉथ को सीधे गेम्स में हराया। इस जीत ने ना केवल प्रणॉय के आत्मविश्वास को बढ़ाया है, बल्कि भारत की उम्मीदें भी आसमान छू रही हैं। प्रणॉय ने 21-12, 21-7 की शानदार जीत दर्ज की, जो सिर्फ 34 मिनट में ही संपन्न हो गई।
प्रणॉय ने मैच की शुरुआत से ही अपने हावी रहकर खेल का नक्शा बदल दिया। उनके निरंतर अच्छे शॉट्स और रणनीतिक खेल ने रॉथ को पूरी तरह से मात दी। मैच के दौरान रॉथ ने कई बार वापसी की कोशिश की, लेकिन प्रणॉय ने अपनी गति और खेल के नियंत्रण को बनाए रखा।
यह जीत प्रणॉय के लिए उनके ओलंपिक करियर की पहली जीत रही है और यह भारतीय बैडमिंटन के इतिहास में एक महत्वपूर्ण अध्याय जोड़ती है।
प्रणॉय और भारतीय बैडमिंटन टीम ने इस ओलंपिक के लिए कड़ी मेहनत और तैयारी की है। उनके कोच, मैथियास बोए, ने खिलाड़ियों के तकनीकी और मानसिक दोनों पक्षों पर काम किया है। उनकी मेहनत और तपस्या अब रंग लाती नजर आ रही है।
प्रणॉय का अगला मुकाबला फ्रांस के क्रिस्टो पोपोव और ग्वाटेमाला के केविन कॉर्डोन के बीच होने वाले मैच के विजेता से होगा। यह मुकाबला भी बेहद महत्वपूर्ण होगा क्योंकि इस जीत से भारत के लिए पदक की उम्मीदें और प्रबल हो जाएंगी।
प्रणॉय की इस जीत ने भारत की बैडमिंटन में पदक की संभावनाओं को काफी ऊंचा कर दिया है। भारतीय बैडमिंटन टीम में और भी कई प्रतिभाशाली खिलाड़ी शामिल हैं, जो बेहतरीन प्रदर्शन करने की क्षमता रखते हैं।
प्रणॉय की इस जीत ने न केवल उनके व्यक्तिगत करियर को ऊंची उड़ान दी है बल्कि देश की उम्मीदों को भी सजग किया है। अब देखने की बात यह होगी कि प्रणॉय अपने आगामी मुकाबलों में कैसी रणनीति अपनाते हैं और अपने नाम को इतिहास में किस प्रकार दर्ज कराते हैं।
पेरिस ओलंपिक में प्रणॉय की यह जीत न सिर्फ उनके आत्मविश्वास को बढ़ाएगी बल्कि उनके प्रशंसकों और देशवासियों में भी नई उम्मीद की किरण जगा दी है।
प्रणॉय ने तो बस एक मैच नहीं जीता, एक नया युग शुरू कर दिया! ये स्कोर देखकर लगा जैसे रॉथ को कोई ड्रैगन खा गया हो! 😍
मैंने तो बस देखा, और दिल दहल गया!
जब जिंदगी तुम्हें बार-बार गिराती है... तो तुम उठते हो, और उसी बार दुनिया को झुका देते हो 🌟
प्रणॉय ने सिर्फ बैडमिंटन नहीं, अपने सपनों का भी जीत लिया।
इस जीत का महत्व सिर्फ दो गेम्स के स्कोर तक सीमित नहीं है, यह तो भारतीय युवा पीढ़ी के लिए एक नया आदर्श है, जो साबित कर रहा है कि अगर आप लगातार मेहनत करते हैं, तो कोई भी बाधा आपके रास्ते में नहीं आ सकती, चाहे वो ओलंपिक हो या फिर कोई अंतरराष्ट्रीय प्रतिद्वंद्वी, और यह जीत न केवल एक खिलाड़ी की है, बल्कि एक पूरे देश की आत्मा की है जो अब और भी ज्यादा उत्साहित हो गई है।
ये जीत बस एक मैच नहीं था भाई, ये तो एक जागृति थी। अब देखो देश कितना जोश में है।
अब तो बस यही बचा है कि प्रणॉय को राष्ट्रीय राजमार्ग पर लगे उसकी तस्वीर और गाड़ियों पर उसका नाम लिख दिया जाए, वरना ये जीत बर्बाद हो जाएगी! 🇮🇳🔥
ये सब जाल है... ओलंपिक में कोई भारतीय ऐसा नहीं जीत सकता जब तक सरकार अपनी नौकरियां नहीं बढ़ा देती और बैडमिंटन फेडरेशन के बाबू अपनी बैठकें नहीं बंद कर देते... ये सब बस धोखा है
क्या आपने कभी सोचा है कि एक खिलाड़ी के अंदर जब तक आत्मविश्वास नहीं आता, तब तक उसका शरीर भी उसकी इच्छा का पालन नहीं करता? प्रणॉय ने अपने दिमाग को जीता, फिर बाकी सब आ गया। ये विजय नहीं, ये अंतर्दृष्टि है।
प्रणॉय की टेक्निकल एक्यूरेसी, एंड्यूरेंस, और फॉर्म कंट्रोल इंटरनेशनल लेवल पर टॉप-टियर है। उनके बैकहैंड ड्राइव और नेट शॉट्स का टाइमिंग जैसे एक घड़ी की तरह है। ये जीत उनकी ट्रेनिंग इंफ्रास्ट्रक्चर की सफलता का प्रमाण है।
34 मिनट? ये तो बस एक ड्रिल था। अगला खिलाड़ी अच्छा होगा तो देखना।
अभी तो शुरुआत हुई है, अब तो उसकी तस्वीरें हर घर में लगनी चाहिए, नहीं तो भारत का गौरव बर्बाद हो जाएगा! अगर ये जीत नहीं दिया तो वो खिलाड़ी बेकार है!
एक लड़का, एक रैकेट, और एक देश के सपने...
प्रणॉय ने सिर्फ गेम नहीं जीता, एक पीढ़ी के दिलों को छू लिया।
मैं तो आज फिर से बैडमिंटन खेलने निकल पड़ा 😄🏸
इसके बाद तो लगता है जैसे प्रणॉय के रैकेट में कोई जादू भर दिया गया हो... वो तो बस बैठे रहे, और रॉथ खुद ही गिर गया 😂
हमारे बैडमिंटन के लिए ये जीत बस शुरुआत है। अब तो बस यही चाहिए कि हर शहर में बैडमिंटन कोर्ट बने, नहीं तो ये जीत भी बेकार हो जाएगी!
क्या ये जीत बस एक खिलाड़ी की है? नहीं... ये तो एक अभियान की शुरुआत है। मैं तो अपने बच्चे को भी बैडमिंटन सिखाने लगा हूँ।
ये सब बस एक बड़ा धोखा है। जब तक हमारे खिलाड़ियों को वास्तविक अंतरराष्ट्रीय टूर्नामेंट्स में खेलने का मौका नहीं मिलेगा, तब तक ये सब बस एक चित्रकथा है। ये जीत बस एक टेस्ट मैच की तरह है, ओलंपिक के लिए तो अभी बहुत दूर हैं।
प्रणॉय बहुत अच्छा खेला... बस अब बाकी खिलाड़ियों को भी उसी तरह तैयार करना होगा। मैंने तो आज अपना रैकेट निकाल लिया 😊
ये जीत बस एक खिलाड़ी की नहीं, ये तो हर उस बच्चे की है जो अपने घर के बरामदे में रैकेट घुमाता है।
अब तो देखो, देश तुम्हारे लिए खड़ा है! 💪🔥
क्या आपने कभी सोचा कि एक खिलाड़ी के अंदर जब शांति होती है, तो उसकी गति भी शांति के साथ बढ़ती है? प्रणॉय का खेल शांति का नृत्य है। ये जीत तो अहंकार की नहीं, अंतर्निहित शक्ति की है।
प्रणॉय ने तो बस गेम जीता नहीं... एक जुनून जगा दिया।
मैंने आज अपनी बहन को भी बैडमिंटन के लिए प्रेरित किया 😄
और हाँ, उसने मुझे अब तक 3 बार हरा दिया।
क्या आप जानते हैं कि इस जीत के पीछे कौन है? क्या आप जानते हैं कि ये सब किसके लिए है? ये तो एक विशाल राजनीतिक योजना है... जिसमें बैडमिंटन फेडरेशन, राष्ट्रीय चिंतन, और एक अज्ञात वैश्विक शक्ति शामिल है... और प्रणॉय... वो बस एक प्यूपेट है... जिसे बस एक बार खेलने को कहा गया... और उसने खेल दिया... और अब हम सब उसके लिए जोश में हैं... लेकिन क्या हम जानते हैं कि ये सब क्यों हुआ?