जब रात का समय हो या अकेला कमरा, तो हॉरर फ़िल्में एक अलग एहसास देती हैं। बहुत लोग कहेंगे कि ये सिर्फ झुनझुनी नहीं बल्कि दिमाग को तेज़ भी करती हैं। आप भी कभी सोचा है क्यों हर साल नई‑नई भयानक फिल्में रिलीज़ होती रहती हैं? इसका कारण बस यही है – डर हमारे अंदर छिपी जिज्ञासा को बाहर निकालता है।
पहली बात तो ये है कि हॉरर हमें रोजमर्रा की बोरियत से बचाता है। एक तीखा सस्पेंस, अचानक आवाज़ या फिर अनपेक्षित मोड़ हमें स्क्रीन के साथ जगा देता है। दूसरा कारण है कहानी में अक्सर छुपी सामाजिक संदेशें – जैसे डरावनी फिल्म "तन्ना" ने ग्रामीण महिलाओं की स्थिति दिखायी, जबकि "बिल्ली का बच्चा" ने टेक्नोलॉजी के खतरे को उजागर किया। इस तरह फ़िल्म सिर्फ थ्रिल नहीं देती, बल्कि सोचने पर भी मजबूर करती है।
अगर आप अभी शुरुआत कर रहे हैं तो कुछ क्लासिक और नई फिल्में मददगार होंगी:
इन फ़िल्मों में एक बात समान है – कहानी का रिद्म तेज़ है, संगीत सही जगह पर डर पैदा करता है और अंत में कुछ न सोच पाने वाला मोड़ रहता है। आप इन्हें घर पर या दोस्तों के साथ देख सकते हैं, लेकिन हेडफ़ोन ज़रूर लगाएँ ताकि साउंड इफेक्ट पूरी तरह से महसूस हो।
अब बात करते हैं कब देखनी चाहिए हॉरर फ़िल्में? अगर आप सोने से पहले देखेंगे तो नींद में डरावनी सपने आ सकते हैं। इसलिए शाम के समय, जब घर का माहौल शांत हो, या दोस्तों के साथ पॉपकॉर्न लेकर देखें – इससे मज़ा दो गुना बढ़ जाता है। साथ ही, छोटे बच्चों को यह फ़िल्में नहीं दिखाएँ; उनका मन बहुत संवेदनशील होता है और डरावनी छवियां लंबे समय तक असर कर सकती हैं।
अंत में एक आसान टिप: हमेशा ट्रेलर देख लें और रिव्यू पढ़ें। कई बार फिल्म का नाम सुनते ही हम उत्साहित हो जाते हैं, पर कहानी हमारे पसंदीदा जॉनर से मेल नहीं खाती तो निराशा होती है। रिव्यू में दर्शकों के अनुभव को देखें; अगर 70% लोग "स्कोरिंग" या "सस्पेंस" की बात कर रहे हों, तो फ़िल्म आपके लिए सही होगी।
हॉरर फ़िल्में सिर्फ डराने के लिये नहीं बनतीं – वो हमें अपने अंदर छिपे भावनाओं को पहचानने में मदद करती हैं। इसलिए अगली बार जब नई हॉरर रिलीज़ हो, तो एक कप चाय और पॉपकॉर्न लेकर बैठें, और इस रोमांच का पूरा आनंद लें।
स्टेनली क्यूब्रिक की 1980 की हॉरर फिल्म 'द शाइनिंग' में शेली डुवाल ने वेंडी टोरेंस की भूमिका निभाई। उनकी अदाकारी, खासकर जेक निकोलसन के साथ की दृश्यों में, प्रारंभिक आलोचनाओं का शिकार हुई। लेकिन समय के साथ उनकी प्रस्तुति को गहराई और जटिलता के साथ पहचाना गया है, विशेषकर फिल्म निर्माण के कठिनाईपूर्ण शर्तों में।
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