18
जून,2024
फ्रांस ने यूरो 2024 क्वालीफाइंग मैच में ऑस्ट्रिया के खिलाफ 1-0 की पतली जीत हासिल की, लेकिन यह जीत इतनी सरल नहीं थी जितनी स्कोरलाइन दिखाती है। मैच का एकमात्र गोल ऑस्ट्रियाई खिलाड़ी मैक्सीमिलियन वोबर के अपने ही जाल में डालने से आया। इसने मैच को अप्रत्याशित मोड़ दिया, जहां तक कोई वास्तव में अपनी टीम में उम्मीद नहीं करता था।
फ्रांस के स्टार खिलाड़ी किलियन एमबाप्पे ने इस मैच में अपनी प्रतिभा का परिचय दिया, लेकिन वे भी बाधाओं से घिरे रहे। एक वक्त ऐसा आया जब एमबाप्पे को नाक की चोट लगी, जब उनका चेहरा ऑस्ट्रियाई डिफेंडर डैंसो के कंधे से टकराया। इसके बावजूद उन्होंने मैदान पर लौटने की कोशिश की, लेकिन बिना रेफरी की अनुमति के लौटने के कारण उन्हें पीला कार्ड मिला। यह कार्ड उनके लिए आगे परेशानी का सबब बन सकता है, क्योंकि अगर वे अगले मैचों में और एक पीला कार्ड प्राप्त करते हैं, तो वे क्वार्टर-फाइनल से पहले ही सस्पेंड हो सकते हैं।
यह मैच न’गोलो कांते के मजबूत प्रदर्शन के बिना शायद निराशाजनक हो सकता था। उन्हें 'प्लेयर ऑफ द मैच' के रूप में चुना गया, और इसका पूरा श्रेय उनकी रक्षण में शानदार भूमिका को जाता है। खासकर, आखिरी मिनटों में उनका एक निर्णायक टैकल ऑस्ट्रिया के संभावित गोल को रोकने में सफल रहा, जिससे फ्रांस की जीत सुनिश्चित हो सकी।
ऑस्ट्रिया के कोच राल्फ रैंगनिक ने अपनी टीम के प्रयासों की तारीफ की। उन्होंने कहा कि टीम ने काफी मौके बनाए थे, लेकिन दुर्भाग्यवश वे फ्रांस जैसी मजबूत टीम के सामने सफल नहीं हो सके। ऑस्ट्रिया के खिलाड़ियों में निकोलस सिवाल्ड के प्रयास उल्लेखनीय थे, जो इस टूर्नामेंट में सबसे अधिक टैकल बनाने वाले खिलाड़ी बने।
मैच के दौरान कई महत्वपूर्ण घटनाएँ घटित हुईं। दोनों टीमों को गोल करने के कई अवसर मिले, लेकिन उनमें से बहुत से मौकों को पूरी तरह से भुनाया नहीं जा सका। इसके अलावा, कुछ विवादास्पद रेफरी निर्णयों ने भी मैच की गर्मी को बढ़ा दिया। एक निर्णय विशेष रूप से ऑस्ट्रिया के समर्थकों के लिए निराशाजनक साबित हुआ, जो महसूस करते थे कि उनके पक्ष में पेनल्टी दी जानी चाहिए थी।
फ्रांस के कोच डिडिएर डेसचैम्प्स के लिए यह मैच एक महत्वपूर्ण मील का पत्थर साबित हुआ, क्योंकि यह उनकी टीम के लिए 100वीं जीत थी। उन्होंने इस जीत को टीम के समर्पण और संगठित खेल का परिणाम बताया। जीत के बाद, डेसचैम्प्स ने खिलाड़ियों की मेहनत और उनके दृढ़ संकल्प की सराहना की।
इस महत्वपूर्ण जीत के बाद, फ्रांस की टीम अपने भविष्य के मैचों में और बेहतर प्रदर्शन करने की अपेक्षा रखती है। उन्हें आवश्यकता होगी कि वे अपनी रणनीतियों को और मजबूत करें और खिलाड़ियों की चोटों से निपटने के लिए तैयार रहें। ऑस्ट्रिया के लिए, यह हार उनकी टीम की कमजोरियों को उजागर करता है, लेकिन साथ ही यह उनकी संघर्षशीलता और मेहनत को भी दर्शाता है। कोच राल्फ रैंगनिक को भरोसा है कि उनकी टीम अगले मैचों में और बेहतर प्रदर्शन कर सकती है।
अंत में, यह मैच सभी दर्शकों के लिए एक रोचक अनुभव साबित हुआ और फुटबॉल प्रेमियों के लिए रोमांचक दृश्य प्रस्तुत किए। इस प्रकार की घटनाएँ खेल की अनिश्चितता और सुन्दरता को और भी बढ़ाती हैं।
एमबाप्पे की नाक की चोट देखकर दिल टूट गया। वो तो बस जीने के लिए मैदान पर आता है, न कि घायल होने के लिए। कोई रेफरी नहीं तो फुटबॉल का क्या मतलब।
कांते ने जो टैकल किया वो इतिहास बन गया।
फ्रांस जीत गया तो क्या हुआ? ऑस्ट्रिया ने तो दस गोल का मौका बनाया था और उनके खिलाफ गोल नहीं हुआ तो ये लोग फुटबॉल नहीं खेलते, वो चारों ओर घूमते हैं और बस बॉल को डराते हैं।
एमबाप्पे को पीला कार्ड? ये तो फ्रांस के लिए बर्बरता है।
वो ऑटोगोल? शायद वो वोबर फ्रांस के स्पाई था। क्या तुम्हें नहीं लगता कि ये सब फेक है? फ्रांस ने ऑस्ट्रिया के खिलाड़ी को ब्रेनवॉश कर दिया होगा।
रेफरी भी उनका हिस्सा है। कोई पेनल्टी नहीं? ये तो अंतरराष्ट्रीय षड्यंत्र है।
कांते का प्रदर्शन एक एक्सपर्ट सिस्टम की तरह था-एंट्री कवरेज, डिस्टेंस मैनेजमेंट, टाइमिंग ऑफ टैकल्स, सब कुछ ऑप्टिमाइज्ड।
एमबाप्पे की चोट एक सिस्टम फेल्योर का उदाहरण है-कोचिंग स्टाफ ने प्री-मैच प्रोटोकॉल में फिजिकल रिस्क असेसमेंट को इग्नोर किया।
ऑटोगोल का एक्सप्लोरेशन इंडिकेट्स डिफेंसिव ब्रेकडाउन इन एक्सीडेंटल प्रेशर सिचुएशन्स।
ऑटोगोल ने मैच बचा लिया। बाकी सब बकवास था।
फ्रांस ने जीत ली तो तुम सब उसे ही नाम दे रहे हो। ऑस्ट्रिया ने तो बस गोल नहीं किया, वो तो फुटबॉल के नियम भूल गए।
एमबाप्पे को पीला कार्ड? उसे तो लाल कार्ड चाहिए था, उसकी नाक चोट नहीं, उसकी बेवकूफी चोट है।
ये टीमें तो अपने खिलाड़ियों को बर्बाद कर रही हैं।
फ्रांस के खिलाफ ऑस्ट्रिया का लड़ना जैसे कोई छोटा बच्चा बर्फ के पहाड़ पर चढ़ रहा हो।
कांते का टैकल? वो तो भारतीय योद्धाओं की तरह था-शांत, लेकिन अपने देश के लिए जीवन देने को तैयार।
एमबाप्पे की नाक की चोट ने मुझे याद दिलाया कि खेल भी जीवन है-कभी तुम जीतते हो, कभी टूटते हो, लेकिन वापस आने की हिम्मत ही सच्ची जीत है।
बस एक ऑटोगोल से पूरा मैच बदल गया।
ये फुटबॉल है भाई, कोई नहीं जानता क्या होगा।
मैंने तो बस चाय पीते हुए देखा, और फिर दोबारा चाय बनाई।
फ्रांस जीत गया? अच्छा हुआ। हमारे लिए ये जीत भी जैसे हमारी टीम जीत गई।
कोई ऑस्ट्रिया की तारीफ नहीं करेगा। हमारे लिए फ्रांस ही दोस्त है।
मैच का असली जीत तो उन खिलाड़ियों का था जिन्होंने चोट के बावजूद मैदान पर रहने का फैसला किया।
एमबाप्पे की लगन, कांते की चेतना, ये सब खेल की असली जीत है।
रेफरी के निर्णयों के बारे में बहस करने की बजाय, इन लोगों के समर्पण की तारीफ करना चाहिए।
तो ये सब जीत तो ऑटोगोल पर टिकी है? तो फिर एमबाप्पे की प्रतिभा की बात क्यों कर रहे हो? कांते का टैकल? अगर वो नहीं करता तो भी ऑस्ट्रिया ने गोल नहीं किया होता, क्योंकि उनका अटैक तो बस एक रात का सपना था।
और डेसचैम्प्स की 100वीं जीत? ये तो उनकी जीत नहीं, फ्रांस की जीत है, और फ्रांस की जीत तो हमेशा से होती रही है, बस अब उन्हें लगता है कि वो इतिहास बना रहे हैं।
मैं तो ये कहूंगा कि ये मैच बहुत ज्यादा रोमांचक नहीं था, बस एक बार देख लो, दूसरी बार नहीं।
ऑस्ट्रिया को पेनल्टी नहीं मिला? अच्छा, तो फ्रांस को दो ऑटोगोल मिले, तो फिर ये तो बराबरी है।
कोई रेफरी नहीं तो ये मैच बस एक गलत बॉल का बहाना था।
और फिर ये सब लोग निकोलस सिवाल्ड की टैकल्स की बात कर रहे हैं? ये तो उसके लिए एक बहाना था कि वो बस फुटबॉल नहीं खेल रहा, बल्कि एक ब्रेकडाउन एक्सपर्ट बन गया है।
मैं तो सोचता हूँ कि अगर ऑस्ट्रिया के बच्चे भी इतने बुद्धिमान होते तो वो बस घर पर रहते और बाहर नहीं आते।