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सित॰,2025
ओम राउत द्वारा निर्देशित Adipurush भारतीय महाकाव्य रामायण के युद्धखण्ड पर आधारित एक आधुनिक रूपांतरण है। इस परियोजना में प्रीभास ने राघव (भगवान राम) की भूमिका संभाली, जबकि कृति सनन ने जानकी (सीता) और सैफ़ अली खान ने लंकेश (रावण) की भूमिका निभाई। ललित सेन ने लवशमन (लक्ष्मण) की भूमिका को सनी सिंह ने निभाया, और हनुमान का किरदार देवदत्त नगा ने लेकर आए। फिल्म की कहानी राम के 14 वर्ष के वनवास, सीता हरण और अंत में रावण वध तक के प्रमुख अध्यायों को चित्रित करती है।
निर्माण प्रक्रिया में बड़े बजट और अत्याधुनिक तकनीक का उपयोग किया गया, जिससे निर्माताओं की उम्मीद थी कि दर्शकों को एक अत्याधुनिक महाकाव्य अनुभव मिलेगा। संगीत और पृष्ठभूमि स्कोर को खास तौर पर भारतीय शास्त्रीय ध्वनियों के साथ समकालीन साउंड डिजाइन में मिश्रित किया गया, जिससे दृश्यात्मक प्रभाव को परिपूर्ण बनाने का इरादा था।
फिल्म का रिलीज़ होने के बाद समीक्षकों और सामान्य दर्शकों दोनों से मिली-जुली प्रतिक्रियाएँ सामने आईं। प्रीभास की स्क्रीन पर मौजूदगी और उनके संवाद अदायगी को कई आलोचक सराहते हैं, कहते हैं कि उन्होंने राम के चरित्र में एक मजबूत आभा जोड़ी है। परंतु, कई प्रमुख बिंदु हैं जहाँ दर्शकों ने निराशा जताई।
समग्र रूप से, फिल्म को रामायण के समृद्ध साहित्यिक स्रोत को सतही रूप में बदलने के आरोप लगाते हुए कई दर्शकों ने इसे ‘सिनेमा की आपदा’ कहा। कुछ दर्शकों ने पृष्ठभूमि संगीत और प्रीभास के अभिनय को उजागर किया, परंतु ये प्रशंसेँ समग्र नकारात्मक फीडबैक के सामने धुंधली लगती हैं।
भविष्य में ऐसी महाकाव्य फिल्में बनाने के लिए अब तक की सीख यह होगी कि केवल बजटीय शानदार दृश्य और बड़े सितारे पर्याप्त नहीं; कहानी के दिल को छूने वाला संवाद और सच्ची भावनात्मक गहराई ही दर्शकों को बाँध सकती है।
प्रीभास का राम अच्छा था पर वीएफएक्स देखकर लगा जैसे किसी ने गूगल इमेज से बनाया हो। जानकी का किरदार बिल्कुल फीका पड़ गया। ये फिल्म रामायण का नहीं बल्कि बजट का शो है।
ये फिल्म बनाने वाले देशद्रोही हैं जो हिंदू धर्म को हंसी का विषय बना रहे हैं। हनुमान का वीएफएक्स देखकर मेरी आँखों में आँसू आ गए। अगर ये फिल्म अमेरिका में बनती तो वहाँ लोग इसे ओस्कर दे देते। ये देश बर्बर हो गया है।
क्या आपने देखा कि रावण का किरदार सैफ़ अली खान ने निभाया है जो कभी रामायण नहीं पढ़ा और अब ये फिल्म बनाकर सारे हिंदू धर्म को नीचा दिखा रहा है। ये सब कुछ एक गुप्त अंतरराष्ट्रीय षड्यंत्र है जो भारत के पुराणों को नष्ट करना चाहता है। बजट जितना ज्यादा खर्च किया उतना ही बड़ा धोखा है।
फिल्म की तकनीकी कमियाँ अस्वीकार्य हैं, लेकिन उसके पीछे की इरादे को समझना भी जरूरी है। रामायण को आधुनिक दृष्टिकोण से पेश करने की कोशिश तो बहुत बहादुरी की बात है। संवाद खराब हैं, हाँ, लेकिन क्या हमने कभी सोचा कि शास्त्रों के भाव को फिल्म के माध्यम से समझाना इतना आसान नहीं है? कुछ चीजें तो बस अनुभव के लिए होती हैं।
इस फिल्म के माध्यम से एक नया आधुनिक भारतीय महाकाव्य निर्माण के लिए एक निर्माण वातावरण बनाने की आवश्यकता है। वीएफएक्स की कमी के साथ-साथ नैरेटिव की गहराई का अभाव भी एक गंभीर असमतोलता है। हमें इसे एक अध्ययन के रूप में देखना चाहिए और भविष्य के लिए एक रूपरेखा तैयार करनी चाहिए। एक बार फिर, तकनीक अकेली पर्याप्त नहीं है। भावनात्मक सत्य की आवश्यकता है।